Sawan 2025: भगवान शिव को समर्पित सावन माह 11 जुलाई से शुरू होगा। इस माह में भगवान शिव की विशेष पूजा-अर्चना की जाती है। सावन माह की शुरुआत से पहले पढ़ें भगवान शंकर से जुड़ी ये पौराणिक कथाएं-


Sawan 2025: भगवान शिव को यूं ही भोलेनाथ नहीं कहा जाता है। मान्यता है कि भगवान शंकर एक लोटे जल के अभिषेक भर से ही प्रसन्न हो जाते हैं और भक्त के सभी दुख दूर कर देते हैं। आपने देखा होगा कि शिव जी के गले में नाग, एक हाथ में त्रिशूल और दूसरे हाथ में डमरू रहता है। भगवान शिव की जटा में गंगा और अर्ध चंद्रमा भी सुशोभित है। लेकिन क्या आप जानते हैं कि भगवान शिव के पास कहां से आए हाथों में डमरू व त्रिशूल और गले में नाग क्यों करते हैं धारण। पढ़ें सावन माह शुरू होने से पहले भगवान शिव से जुड़ी ये पौराणिक कथाएं-
भगवान शिव को कैसे मिला त्रिशूल: पौराणिक कथा के अनुसार, सृष्टि के आरंभ में ब्रह्मनाद से जब भगवान शिव प्रकट हुए तो उनके साथ रज, तम और सत यह तीनों गुण भी प्रकट हुए। इनके बीच सामंजस्य बनाए बगैर सृष्टि का संचालन मुश्किल था। इसलिए देवों के देव महादेव ने यही तीनों गुण त्रिशूल के रूप में अपने हाथों में धारण किया।
भगवान शंकर को कैसे मिला डमरू: भगवान शिव के हाथों में डमरू आने की कहानी रोचक है। मान्यता है कि सृष्टि के आरंभ में जब देवी सरस्वती प्रकट हुईं तो उन्होंने अपनी वीणा से सृष्टि को ध्वनि दी, लेकिन इस ध्वनि में कोई सुर या संगीत नहीं था। उस समय भगवान शिव ने नृत्य करते हुए 14 बार डमरू बजाया और उस डमरू से सुर-ताल निकले और सृष्टि में ध्वनि का जन्म हुआ। शिव महापुराण में डमरू को भगवान ब्रह्मा का स्वरूप बताया गया है।
भगवान शिव के कैसे आया गले में नाग: भगवान शिव के गले में एक नाग हमेशा रहता है। शिव महापुराण में वर्णित है कि ये नागों के राजा हैं, जिनका नाम वासुकी है। सागर मंथन के समय नागों के राजा वासुकी ने रस्सी का काम किया था जिससे सागर को मथा गया था। वासुकी को भगवान शिव का परम भक्त माना गया है। कहते हैं कि भगवान शिव ने उनकी भक्ति देखकर उन्हें नागलोक का राजा बनायाथा और अपने गले में आभूषण की भांति रखने का वरदान दिया था, इस तरह से भगवान शिव के परम भक्त वासुकी अमर हो गए थे।