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बिहार की राजनीति में घमासान: नीतीश कुमार की भाजपा से नाराजगी और गठबंधन के संभावित उलटफेर

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बिहार में पिछले 20 दिनों से सियासी तापमान बढ़ा हुआ है। बिहार की राजनीति में उलटफेर की आहटों ने सबको चौंका दिया है, खासकर जब आरजेडी के प्रमुख और पूर्व मुख्यमंत्री लालू प्रसाद यादव ने नीतीश कुमार के लिए राजद का दरवाजा खोले रखने का बयान दिया। यह बयान नववर्ष के पहले ही दिन आया और बाद में उनके बेटे तेजस्वी यादव को इस पर सफाई देनी पड़ी। इसके बावजूद, बिहार की राजनीति में बदलाव की अटकलें खत्म नहीं हो रही हैं।

नीतीश कुमार और भाजपा के बीच बढ़ती दूरी

16 दिसंबर 2024 को केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने एक टीवी चैनल के कार्यक्रम में जब यह सवाल किया गया कि क्या भाजपा नीतीश कुमार के नेतृत्व में आगामी चुनाव लड़ेगी, तो उन्होंने स्पष्ट रूप से कहा कि एनडीए में कोई दरार नहीं आएगी। हालांकि, नीतीश कुमार की चुप्पी से यह कयास लगाए गए कि वे शाह के बयान से नाराज हैं। इसके बाद, बिहार में चल रहे मेगा इवेंट ‘बिहार कनेक्ट’ में भी नीतीश कुमार उपस्थित नहीं हुए, जिससे उनके मनमुटाव की चर्चाएं तेज हो गईं।

नीतीश कुमार ने बाद में खुद को मीडिया से अलग रखा और बिहार के बाहर दिल्ली में भी किसी से मुलाकात नहीं की। हालांकि, उन्हें दिवंगत प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह के परिजनों से मिलने का मौका मिला, जो उनके राजनीतिक स्टैंड को लेकर कुछ नया संकेत दे रहे थे।

लालू यादव का ब्यान और सियासी परिदृश्य

लालू प्रसाद यादव ने 1 जनवरी 2025 को यह बयान दिया कि वह नीतीश कुमार के लिए राजद का दरवाजा खोलने को तैयार हैं। इससे बिहार की सियासत में हलचल मच गई और कयास लगाए गए कि बिहार में महागठबंधन में नया मोड़ आ सकता है। लालू यादव ने हालांकि, यह भी स्पष्ट किया कि उनका यह बयान राजनीति के परिपेक्ष्य में था, लेकिन तेजस्वी यादव को इसके बाद सफाई देनी पड़ी और उन्होंने इन अटकलों को नकारा किया।

जेडीयू का सीट शेयरिंग फॉर्मूला

जेडीयू ने आगामी विधानसभा चुनाव को लेकर अपने रणनीतिक कदमों को सख्ती से निर्धारित किया है। जेडीयू ने अपनी सीटों की संख्या को लेकर भाजपा के साथ अपनी स्थिति स्पष्ट की है। इसके तहत, जेडीयू 122 सीटों पर चुनाव लड़ना चाहती है, जबकि भाजपा को 121 सीटें देने का प्रस्ताव है। इस खेल का हिस्सा है सीट शेयरिंग का फॉर्मूला, जिसमें जेडीयू ने जीतन राम मांझी की पार्टी हिन्दुस्तानी अवाम मोर्चा (HAM) और उपेंद्र कुशवाहा की पार्टी राष्ट्रीय लोक मोर्चा (RLM) को सीटें देने का विचार किया है।

इसी बीच, चिराग पासवान और उनकी पार्टी लोजपा को लेकर जेडीयू और भाजपा के बीच विवाद हो सकता है, क्योंकि चिराग पासवान आगामी चुनावों में ज्यादा सीटें हासिल करना चाहते हैं।

चिराग पासवान से निपटने की जिम्मेदारी भाजपा पर

जेडीयू को यह भी अंदाजा है कि चिराग पासवान अपनी पार्टी के लिए अधिक सीटों की मांग करेंगे, जो भाजपा के लिए एक चुनौती बन सकती है। चिराग पासवान ने पहले ही अपनी राजनीतिक महत्वाकांक्षाओं का इज़हार किया है और बिहार की राजनीति में अपनी उपस्थिति को मजबूत करने की योजना बनाई है। इसके लिए वह 30-40 सीटों की मांग करेंगे, जिससे भाजपा की सीटों की संख्या घट सकती है।

इसी के साथ, जेडीयू ने एक रणनीति बनाई है जिसमें वह मांझी और कुशवाहा को अपनी संख्या में समेटते हुए 110-115 सीटों पर अकेले चुनाव लड़ने की योजना बना रही है। इस तरह से भाजपा और जेडीयू के बीच सीटों का संतुलन बनाए रखने का प्रयास किया जाएगा।

भाजपा-जेडीयू के बीच की बढ़ती दूरी और भविष्य की संभावनाएं

इस बीच, भाजपा और जेडीयू के बीच की दूरी बढ़ती जा रही है। पार्टी नेताओं के बीच संवाद की कमी और आगामी चुनावों को लेकर स्पष्ट स्थिति की कमी से यह स्थिति और जटिल होती जा रही है। राजनीतिक विशेषज्ञों का मानना है कि आगामी दिनों में बिहार की राजनीति में कई अप्रत्याशित घटनाएं हो सकती हैं, जो राज्य के राजनीतिक परिदृश्य को पूरी तरह से बदल सकती हैं।

इस सियासी उथल-पुथल में नीतीश कुमार और भाजपा के बीच की बढ़ती दूरियों को लेकर कई सवाल खड़े हो रहे हैं। क्या भाजपा और जेडीयू के बीच कोई बड़ा उलटफेर होगा, या फिर दोनों पार्टियाँ अपनी-अपनी स्थिति पर कायम रहेंगी, यह भविष्य के चुनावों में ही स्पष्ट होगा।

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