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RAS 2018 परीक्षा में रैंकिंग की चूकपदमा चौधरी को गलत अंकों के आधार पर मिली थी 24वीं रैंककोर्ट के आदेश और RTI से खुली पोलअब आयोग ने दी 39वीं रैंक, अभ्यर्थी सकते मेंRPSC की पारदर्शिता पर उठे सवालसुधार की आवश्यकता: क्या होंगे भविष्य
RPSC ने 2018 भर्ती में की थी गंभीर गलती, अब 4 साल बाद सुधारी पदमा चौधरी की रैंकिंग
RPSC की चौंकाने वाली गलती: चार साल बाद सुधरी रैंकिंग, पदमा चौधरी को 24वीं से 39वीं रैंक पर भेजा गया
जयपुर, 15 मई 2025 — राजस्थान लोक सेवा आयोग (RPSC) की कार्यप्रणाली पर एक बार फिर सवाल उठ गए हैं, जब 2018 की आरएएस (राजस्थान प्रशासनिक सेवा) परीक्षा में हुई गलती को चार साल बाद सुधारा गया। इस गलती का शिकार बनीं पदमा चौधरी, जिन्हें पहले 24वीं रैंक मिली थी, अब संशोधित परिणाम में उन्हें 39वीं रैंक पर भेज दिया गया है। यह घटना सिर्फ एक व्यक्ति की रैंकिंग बदलने की नहीं, बल्कि पूरे परीक्षा प्रणाली की पारदर्शिता और विश्वसनीयता पर सवाल उठाने वाली है।
गलती का खुलासा: कैसे हुई चूक?
2018 में आयोजित RAS मुख्य परीक्षा और इंटरव्यू के बाद आयोग ने अंतिम परिणाम घोषित किया था। उस समय पदमा चौधरी को 24वीं रैंक पर रखा गया था और उनकी नियुक्ति RAS अधिकारी पद पर की गई। लेकिन हाल ही में सामने आए तथ्यों के अनुसार, उनके अंक गलत तरीके से जोड़ दिए गए थे। असल में उन्हें इंटरव्यू में जो अंक मिलने चाहिए थे, उसमें गड़बड़ी हो गई थी।
सूत्रों के अनुसार, पदमा चौधरी को इंटरव्यू में अधिक अंक दे दिए गए थे, जिससे उनकी रैंक 24वीं बन गई। लेकिन जब अन्य अभ्यर्थियों ने इस पर आपत्ति दर्ज कराई, तो मामला अदालत तक पहुंचा। न्यायालय ने RPSC को निर्देश दिया कि वे संबंधित दस्तावेजों की जांच करें और यदि कोई गड़बड़ी हो तो उसे सुधारें।
चार साल की देरी: क्यों लगा इतना समय?
सबसे बड़ा सवाल यह है कि आखिर इतनी बड़ी गलती को सुधारने में चार साल क्यों लग गए? यह न केवल प्रशासनिक लापरवाही को उजागर करता है, बल्कि उन सैकड़ों अभ्यर्थियों की मेहनत को भी ठेस पहुंचाता है जिन्होंने इस परीक्षा के लिए वर्षों तक मेहनत की थी।
RPSC जैसी संवैधानिक संस्था से यह उम्मीद की जाती है कि वह पारदर्शिता और निष्पक्षता के साथ काम करे। लेकिन इस मामले में जिस तरह से चार साल तक एक गलत रैंकिंग के आधार पर नियुक्ति दी गई और फिर अचानक उसे बदल दिया गया, यह अभूतपूर्व है।
पदमा चौधरी का पक्ष: “मेरी कोई गलती नहीं”
इस पूरे मामले में सबसे अधिक मानसिक, सामाजिक और प्रशासनिक दबाव झेलने वाली अभ्यर्थी पदमा चौधरी ने स्पष्ट किया है कि इस गलती में उनकी कोई भूमिका नहीं है। उन्होंने तो आयोग द्वारा घोषित परिणाम के आधार पर नियुक्ति ली थी और पिछले चार वर्षों से अपनी सेवाएं भी दे रही थीं।
अब जब उन्हें 39वीं रैंक पर भेजा गया है, तो यह देखना दिलचस्प होगा कि क्या इससे उनकी वर्तमान पोस्टिंग पर कोई असर पड़ेगा या नहीं। क्या उन्हें किसी और पद पर स्थानांतरित किया जाएगा? क्या वे अब भी RAS रहेंगी? या फिर किसी अन्य सेवा में भेजा जाएगा?
न्यायालय की भूमिका और अभ्यर्थियों का संघर्ष
यह पूरा मामला तब प्रकाश में आया जब एक अन्य अभ्यर्थी ने RTI (सूचना का अधिकार) के माध्यम से पदमा चौधरी के इंटरव्यू अंकों की जानकारी प्राप्त की और उसमें पाई गई विसंगति को लेकर कोर्ट का रुख किया। अदालत में मामला विचाराधीन रहा और अंततः आयोग को अपनी गलती स्वीकार करनी पड़ी।
यह उदाहरण यह दर्शाता है कि किस प्रकार RTI और न्यायिक प्रक्रिया आम नागरिकों के लिए न्याय दिलाने का साधन बन सकती है। यह उन अभ्यर्थियों के संघर्ष की जीत है जिन्होंने हार नहीं मानी और न्याय के लिए अंत तक लड़ते रहे।
RPSC की प्रतिष्ठा पर असर
RPSC की यह गलती उसकी विश्वसनीयता पर बड़ा प्रश्नचिह्न खड़ा करती है। पहले भी RPSC पर परीक्षा में पेपर लीक, रिजल्ट में देरी, और आरक्षण नीति को सही तरीके से लागू न करने के आरोप लगते रहे हैं। लेकिन यह मामला इसलिए भी गंभीर है क्योंकि इसमें एक अभ्यर्थी की नियुक्ति के चार साल बाद उसकी रैंक बदली गई है।
इससे यह प्रश्न उठता है कि क्या आयोग की जांच प्रणाली इतनी कमजोर है कि वह मूल आंकड़ों में त्रुटि को पहचान नहीं सकी? क्या कोई ऑडिट प्रक्रिया नहीं है जिससे परिणाम की दोबारा पुष्टि की जा सके?
अन्य अभ्यर्थियों की प्रतिक्रिया
जब यह खबर सामने आई कि पदमा चौधरी की रैंक 24 से गिराकर 39 कर दी गई है, तो अन्य चयनित और प्रतीक्षारत अभ्यर्थियों के बीच भी चिंता का माहौल बन गया। बहुत से अभ्यर्थी अब इस बात को लेकर चिंतित हैं कि कहीं उनके साथ भी ऐसी कोई त्रुटि न हो गई हो।
एक अभ्यर्थी ने नाम न छापने की शर्त पर कहा, “हमें अब इस बात पर भरोसा नहीं रहा कि आयोग ने हमारे अंक सही तरीके से जोड़े हैं या नहीं। हमें डर है कि कहीं चार साल बाद हमारी रैंकिंग भी न बदल जाए।”
आगे की राह: क्या हो सकता है समाधान?
इस मामले के बाद विशेषज्ञों ने सुझाव दिया है कि RPSC को एक निष्पक्ष और पारदर्शी ऑडिट प्रणाली लागू करनी चाहिए, जिसमें प्रत्येक अभ्यर्थी को उसके लिखित और साक्षात्कार अंकों की पूर्ण जानकारी ऑनलाइन उपलब्ध कराई जाए। इसके साथ ही एक मजबूत आपत्ति निवारण तंत्र (Grievance Redressal System) होना चाहिए, ताकि कोई भी गलती समय पर सुधारी जा सके।
इसके अलावा आयोग को परीक्षा परिणाम घोषित करने से पहले त्रुटियों की जांच के लिए एक स्वतंत्र समिति बनानी चाहिए जो डेटा का दोबारा मूल्यांकन कर सके।
निष्कर्ष
पदमा चौधरी का मामला RPSC की परीक्षा प्रणाली की एक गंभीर खामी को उजागर करता है। यह सिर्फ एक अभ्यर्थी की रैंकिंग बदलने की बात नहीं, बल्कि यह प्रश्न करता है कि एक सरकारी संस्था कितनी लापरवाही से काम कर सकती है और उसके कारण कितनों का भविष्य प्रभावित हो सकता है। न्यायालय के हस्तक्षेप और RTI जैसे अधिकारों के चलते ही यह गलती उजागर हुई, लेकिन अब यह जरूरी हो गया है कि आयोग खुद को सुधारने की दिशा में ठोस कदम उठाए।
वरना वो दिन दूर नहीं जब RPSC जैसे संस्थानों पर जनता का भरोसा पूरी तरह से खत्म हो जाएगा।