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रेगिस्तान में रोजगार की नई किरण: बंजर ज़मीन पर उगने वाला आक बना आजीविका का साधन

राजस्थान की तपती रेत और बंजर ज़मीन पर अब रोजगार की नई उम्मीदें जन्म ले रही हैं। जिस आक के पौधे को अब तक बेकार और अनुपयोगी माना जाता था, वही अब ग्रामीणों की आर्थिक स्थिति संवारने का माध्यम बन रहा है। इस दिशा में उल्लेखनीय कार्य कर रही हैं महिला उद्यमी रूमा देवी, जिन्होंने इस पारंपरिक औषधीय पौधे को ग्रामीण विकास से जोड़ने का अनोखा मॉडल तैयार किया है।

रूमा देवी का यह नवाचार खासकर महिलाओं और किसानों के लिए लाभदायक सिद्ध हो रहा है। आक से विभिन्न उत्पाद जैसे साबुन, तेल और अन्य औषधीय वस्तुएं बनाई जा रही हैं, जिनकी मांग बाज़ार में लगातार बढ़ रही है। इससे ग्रामीण समुदाय को न केवल अतिरिक्त आमदनी मिल रही है, बल्कि बंजर भूमि का भी सकारात्मक उपयोग हो रहा है।

इस पहल के तहत महिला स्वयं सहायता समूहों को आक की खेती, उत्पाद निर्माण और विपणन की ट्रेनिंग दी जा रही है। साथ ही, स्थानीय स्तर पर संसाधनों के उपयोग से यह मॉडल आत्मनिर्भर भारत अभियान को भी मजबूती प्रदान करता है।

राजस्थान जैसे शुष्क प्रदेशों में, जहां कृषि के सीमित अवसर हैं, वहां इस तरह की पहलें नई आशा का संचार करती हैं। आक जैसे पारंपरिक पौधों को नवाचार से जोड़कर रोजगार का साधन बनाना एक प्रेरणादायक प्रयास है, जो आने वाले समय में देशभर के अन्य हिस्सों के लिए भी एक आदर्श मॉडल बन सकता है।

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