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गांवों में मिट्टी के चूल्हे की परंपरा: आधुनिकता के बावजूद जीवंत संस्कृति

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[स्थान], [तारीख] – जैसे-जैसे आधुनिक रसोई गैस और इलेक्ट्रिक स्टोव का उपयोग बढ़ रहा है, वैसे-वैसे पारंपरिक मिट्टी के चूल्हे कम होते जा रहे हैं। लेकिन ग्रामीण भारत में आज भी कई परिवार पारंपरिक चूल्हे पर खाना पकाते हैं, जो न केवल संस्कृति से जुड़ा हुआ है, बल्कि सेहत और स्वाद के लिहाज से भी अनोखा अनुभव देता है।

हाल ही में एक गांव से आई तस्वीर ने इंटरनेट पर ध्यान खींचा, जिसमें एक मिट्टी के चूल्हे पर ताजा रोटी सेंकी जा रही है। जलती लकड़ियों की गर्मी में यह दृश्य पुराने दौर की यादें ताजा कर देता है, जब हर घर में ऐसे चूल्हे का उपयोग किया जाता था। तस्वीर में जलते हुए दीये से यह भी साफ होता है कि खाना पकाने की यह प्रक्रिया सिर्फ एक रोज़मर्रा का काम नहीं, बल्कि एक परंपरा और संस्कृति का हिस्सा भी है।

मिट्टी के चूल्हे का महत्व

ग्रामीण इलाकों में मिट्टी के चूल्हे का उपयोग सदियों से होता आ रहा है। विशेषज्ञों का मानना है कि ऐसे चूल्हे पर पका खाना अधिक स्वादिष्ट होता है और उसमें एक प्राकृतिक सुगंध भी बनी रहती है। इसके अलावा, यह पर्यावरण के अनुकूल भी होता है, क्योंकि इसमें लकड़ी या उपले का उपयोग होता है, जो स्थानीय स्तर पर आसानी से उपलब्ध होते हैं।

एक स्थानीय महिला, जो रोज़ ऐसे चूल्हे पर खाना बनाती हैं, कहती हैं, “गैस स्टोव से जल्दी खाना बन जाता है, लेकिन मिट्टी के चूल्हे पर बनी रोटी और सब्जी का स्वाद अलग ही होता है। यह हमारी परंपरा है और हम इसे बनाए रखना चाहते हैं।”

आधुनिकता के साथ परंपरा को जोड़ने की पहल

हालांकि, बढ़ते प्रदूषण और लकड़ी की बढ़ती खपत को देखते हुए सरकार ने ग्रामीण इलाकों में उज्ज्वला योजना जैसी योजनाएं चलाई हैं, जिससे महिलाओं को गैस कनेक्शन उपलब्ध कराए जा रहे हैं। लेकिन इसके बावजूद कई परिवार मिट्टी के चूल्हे को पूरी तरह छोड़ नहीं पा रहे हैं। कुछ विशेषज्ञ मानते हैं कि मिट्टी के चूल्हे को थोड़ा मॉडर्न बनाया जाए, जिससे कम धुआं हो और यह सेहत के लिए ज्यादा सुरक्षित बने।

क्या मिट्टी के चूल्हे का भविष्य है?

वर्तमान में शहरों में लोग तंदूर और कंडा-चूल्हे पर बना खाना पसंद करते हैं, जिससे यह साबित होता है कि पारंपरिक खाना पकाने के तरीके आज भी लोकप्रिय हैं। कुछ रेस्तरां भी अब मिट्टी के चूल्हे पर पकी रोटियां और दाल तड़का परोसने लगे हैं, ताकि लोग गांवों के असली स्वाद का अनुभव कर सकें।

लेकिन मुख्य सवाल यह है कि क्या भविष्य में यह परंपरा बची रहेगी? बदलते समय के साथ लोग सुविधा को अधिक प्राथमिकता देते हैं, और गैस या इलेक्ट्रिक स्टोव अधिक किफायती और तेज़ होते हैं। लेकिन फिर भी, मिट्टी के चूल्हे पर बनी रोटी की महक और उसकी खासियत को कोई नहीं भूल सकता।

निष्कर्ष

मिट्टी के चूल्हे पर खाना पकाना सिर्फ एक तकनीक नहीं, बल्कि भारतीय ग्रामीण संस्कृति का हिस्सा है। यह ना सिर्फ एक पारंपरिक कला है, बल्कि स्वाद, स्वास्थ्य और पर्यावरण के लिहाज से भी महत्वपूर्ण है। चाहे आधुनिकता कितनी भी आगे बढ़ जाए, लेकिन मिट्टी के चूल्हे की गर्माहट और उससे जुड़ी यादें कभी खत्म नहीं होंगी।

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