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आखिर कौन है ,ज्योतिबा फुले जिस कारण रखा 11 अप्रैल को राष्ट्रीय अवकाश

ज्योतिराव गोविंदराव फुले, जिन्हें आमतौर पर ज्योतिबा फुले कहा जाता है, भारत के एक महान समाज सुधारक, विचारक और क्रांतिकारी नेता थे। वे 19वीं शताब्दी में जातिवाद, छुआछूत और महिला अत्याचार के विरुद्ध लड़ने वाले पहले लोगों में से एक थे।

शुरुआती जीवन

ज्योतिबा फुले का जीवन काल 1827 से 1890 तक था।

ज्योतिबा फुले का जन्म 11 अप्रैल 1827 को महाराष्ट्र के पुणे शहर में एक माली (बागवानी करने वाला) परिवार में हुआ था। उनका परिवार सामाजिक रूप से पिछड़ा हुआ था और उन्हें समाज में कई प्रकार के भेदभाव का सामना करना पड़ा।

शिक्षा:

उनका पढ़ाई में शुरू से गहरा रुझान था। कठिनाइयों के बावजूद, उन्होंने शुरुआती शिक्षा प्राप्त की और आगे चलकर समाज में शिक्षा के महत्व को समझा।

सामाजिक सुधार कार्य:

ज्योतिबा फुले ने महिलाओं और दलितों के लिए शिक्षा का रास्ता खोला।

1848 में, उन्होंने अपनी पत्नी सावित्रीबाई फुले के साथ मिलकर भारत का पहला लड़कियों का स्कूल पुणे में खोला।

उन्होंने विधवा पुनर्विवाह और दलित उत्थान के लिए भी कार्य किया।

छुआछूत और जाति व्यवस्था के खिलाफ उन्होंने ज़बरदस्त आवाज उठाई।

उन्होंने सत्यशोधक समाज (1873) की स्थापना की, जिसका उद्देश्य जातीय भेदभाव को खत्म करना और समानता लाना था।

महत्वपूर्ण विचार

ज्योतिबा फुले ने कहा कि शिक्षा ही व्यक्ति को जागरूक बनाती है और समाज में समानता लाती है। वे मानते थे कि ब्राह्मणवादी सोच ने समाज में असमानता पैदा की है और इसे शिक्षा व संघर्ष से समाप्त किया जा सकता है।

महत्वपूर्ण रचनाएँ:

गुलामगिरी (1873): इस पुस्तक में उन्होंने जाति व्यवस्था की कड़ी आलोचना की।

तृतीय रत्न (नाटक): जिसमें महिलाओं और दलितों के अधिकारों पर प्रकाश डाला गया।

मृत्यु:

ज्योतिबा फुले का निधन 28 नवंबर 1890 को हुआ। लेकिन उनके विचार और कार्य आज भी समाज सुधार की प्रेरणा बने हुए हैं।

उपलब्धि:

उन्हें महात्मा फुले की उपाधि दी गई।

भारतीय समाज सुधार आंदोलन में उनका नाम स्वर्ण अक्षरों में लिखा गया है।

आज भी शिक्षा और सामाजिक न्याय के क्षेत्र में उनका योगदान अमूल्य माना जाता है।

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