भारतीय संसद में JPC (Joint Parliamentary Committee) एक विशेष समिति है जो किसी विशेष मुद्दे, घोटाले या विषय की गहराई से जांच करने के लिए गठित की जाती है। यह समिति दोनों सदनों, लोकसभा और राज्यसभा, के सदस्यों से मिलकर बनाई जाती है।
JPC का उद्देश्य:
JPC का मुख्य कार्य सरकार की नीतियों, कार्यक्रमों, या विवादित मुद्दों की जांच करना है। इसका गठन तब होता है जब संसद को लगता है कि किसी मामले में विस्तृत और निष्पक्ष जांच की आवश्यकता है।
JPC के गठन की प्रक्रिया:
संसद में प्रस्ताव: JPC का गठन संसद में प्रस्ताव पारित करके किया जाता है। प्रस्ताव में JPC के सदस्यों की संख्या और कार्यक्षेत्र का उल्लेख होता है।
सदस्यों का चयन: JPC के सदस्य विभिन्न राजनीतिक दलों के सांसदों में से चुने जाते हैं, ताकि सभी दलों का प्रतिनिधित्व हो सके।
अध्यक्ष का चयन: JPC का अध्यक्ष आमतौर पर सत्तारूढ़ दल का सदस्य होता है।
JPC के कार्य:
दस्तावेजों और गवाहों की जांच करना।
संबंधित मुद्दे पर सरकार और अन्य संबंधित पक्षों से जानकारी लेना।
रिपोर्ट तैयार कर संसद के समक्ष प्रस्तुत करना।
JPC की सीमाएं:
JPC की सिफारिशें बाध्यकारी नहीं होतीं; सरकार उन्हें स्वीकार करने या अस्वीकार करने के लिए स्वतंत्र होती है।
JPC के पास न्यायिक शक्तियां नहीं होतीं, यानी यह किसी को दंडित नहीं कर सकती।
प्रमुख JPC मामलों के उदाहरण:
बोफोर्स घोटाला (1987): रक्षा सौदे में भ्रष्टाचार की जांच के लिए JPC गठित की गई।
हर्षद मेहता शेयर घोटाला (1992): वित्तीय घोटाले की जांच के लिए JPC बनाई गई।
2जी स्पेक्ट्रम घोटाला (2011): दूरसंचार क्षेत्र में अनियमितताओं की जांच के लिए JPC बनी।
JPC का गठन किसी मामले पर व्यापक दृष्टिकोण प्रदान करता है और संसद की जिम्मेदारी को मजबूत करता है।