भारतीय संस्कृति में माँ को साक्षात् देवी का स्वरूप माना गया है, और जब कोई संतान सच्चे हृदय से अपनी माँ के प्रति भक्ति व श्रद्धा प्रकट करती है, तो वह दृश्य आत्मा को छू लेने वाला बन जाता है। ऐसा ही एक प्रेरणादायक क्षण देखने को मिला जब पूर्व सरपंच प्रतिनिधि श्रीमती जमना चौधरी सारला त्रिवेणी संगम महाकुंभ यात्रा से लौटने के बाद अपनी माता के चरणों में नतमस्तक हुईं और काशी की पवित्र थाली में उनके चरण धोकर आशीर्वाद प्राप्त किया।
यह दृश्य न केवल भारतीय पारिवारिक मूल्यों की गहराई को दर्शाता है, बल्कि यह सिखाता है कि सच्ची तीर्थ यात्रा तब पूर्ण होती है जब हम अपने माता-पिता की सेवा कर उनके आशीर्वाद से अपने जीवन को धन्य करें। जिस तरह गंगा, यमुना और सरस्वती के पावन संगम से आत्मा शुद्ध होती है, उसी प्रकार माता-पिता के चरणों की धूल भी जीवन को पवित्र कर देती है।
श्रीमती जमना चौधरी ने अपने इस कार्य से समाज के लिए एक आदर्श प्रस्तुत किया है, जो बताता है कि भक्ति केवल मंदिरों और तीर्थों तक सीमित नहीं है, बल्कि माता-पिता की सेवा और सम्मान ही सच्ची पूजा है। उनका यह भावनात्मक कार्य संस्कारों की जड़ों को और अधिक मजबूत बनाता है और हर संतान को यह सीख देता है कि माँ के चरणों में ही असली स्वर्ग बसता है। इस तस्वीर ने न केवल हृदयों को स्पर्श किया, बल्कि पूरे समाज के लिए एक प्रेरणा बनकर इतिहास रच दिया।