
परिचय
भारतीय लोककथाओं और इतिहास में ऐसे कई चरित्र मिलते हैं, जिन्होंने अपनी बहादुरी, सत्यनिष्ठा, और धर्म की रक्षा के लिए अपने प्राणों की आहुति दे दी। राजस्थान और आसपास के क्षेत्र में वीर तेजाजी ऐसे ही एक लोकदेवता हैं, जिन्हें लोग आज भी “सर्पों के देवता” और वचनवीर के रूप में पूजते हैं। उनकी कथा केवल वीरता की नहीं, बल्कि वचनबद्धता, नारी सम्मान, परिवार और समाज के प्रति कर्तव्य की भी है। इस कथा में उनकी पत्नी पेमल का भी महत्वपूर्ण स्थान है, जो उनके जीवन की प्रेरणा और साथी थीं।
यह कथा राजस्थान, हरियाणा, और मध्यप्रदेश के लोकगाथाओं में गूंजती है, जहाँ वीर तेजाजी की भक्ति आज भी जीवंत है।
वीर तेजाजी का जीवन और प्रारंभिक दिन

वीर तेजाजी का जन्म 1074 ईस्वी में राजस्थान के नागौर जिले के खड़नाल गांव में हुआ था। वे धौलिया गोत्र के जाट थे। उनके पिता का नाम था तहर्जो, जो खुद एक वीर और समाजसेवी व्यक्ति थे। तेजाजी बचपन से ही साहस, निष्ठा, और धर्म के प्रति समर्पित थे। उनकी दृष्टि में केवल शक्ति और हिंसा की नहीं, बल्कि न्याय और सच्चाई की विजय सर्वोपरि थी।
उनका बचपन ऐसा था कि वे हर समय सामाजिक अन्याय और अन्यायपूर्ण घटनाओं का विरोध करते। उनकी छोटी उम्र में ही वे गायों की रक्षा के लिए जंगल में दुश्मनों से लड़ जाते। इसीलिए उनके माता-पिता ने उन्हें जल्दी विवाह करवा दिया ताकि वे घर के दायित्व भी निभाएं।
पेमल: नायक गोत्र की जाटनी और तेजाजी की पत्नी
तेजाजी का विवाह पेमल से हुआ था, जो नायक गोत्र की जाटनी थीं। पेमल अपने समय की एक समझदार, साहसी और निष्ठावान महिला थीं। बाल विवाह के समय दोनों बच्चे थे, लेकिन साथ बढ़ते हुए दोनों के बीच गहरा लगाव हुआ। पेमल के पिता का गांव पनेर था, जो तेजाजी के गांव से दूर था।
उस समय की परंपरा के अनुसार, विवाह के बाद पत्नी तुरंत अपने ससुराल नहीं जाती थी। वह कुछ वर्षों तक अपने मायके में ही रहती थी। यह सामाजिक प्रथा थी, जिससे दोनों परिवारों को भी तैयारी का समय मिलता था।
विवाह के बाद की अवधि और पेमल की पीड़ा
वर्ष बीत गए, लेकिन तेजाजी अपने कर्तव्य से इतने व्यस्त रहे कि वह पेमल को अपने ससुराल नहीं ले आए। तेजाजी का जीवन गाँव, जंगल, और धर्म की रक्षा में व्यस्त था। वे एक आदर्श नायक की तरह थे जो सामाजिक कुरीतियों, डाकुओं, और अन्याय से लड़ते रहे।
लेकिन पेमल को अपने मायके में ताने सुनने पड़े। गाँव की महिलाओं और सहेलियों ने मज़ाक़ उड़ाना शुरू कर दिया कि “पेमल तो ब्याही तो गई, पर ससुराल नहीं।”
पेमल को यह सब बर्दाश्त नहीं हुआ। वह अपने पति से संदेश भेजी कि यदि वे उसे लेने नहीं आए तो वह त्यागी जाएगी। यह संदेश तेजाजी के लिए एक गहरा झटका था। उन्हें समझ आ गया कि न केवल वे एक वीर योद्धा हैं, बल्कि अपने वचन, अपने कर्तव्यों और नारी सम्मान के रक्षक भी हैं।
तेजाजी का निर्णय: वचन और मर्यादा की रक्षा
तेजाजी ने तुरंत ससुराल जाने का निश्चय किया। उनकी माता ने रोका, कहा कि अभी समय सही नहीं है, और यह यात्रा खतरनाक हो सकती है। लेकिन तेजाजी ने जवाब दिया कि वचन से बड़ा कोई मुहूर्त नहीं होता। वे नारी सम्मान के लिए, अपने कर्तव्य के लिए ससुराल की ओर चल पड़े।
उनकी इस यात्रा में उन्होंने यह संदेश दिया कि न केवल लड़ाई से, बल्कि सामाजिक मर्यादा की रक्षा भी महान वीरता का काम है।
रास्ते में नागिन से मुलाकात और वचन
जैसे ही तेजाजी अपने ससुराल की ओर बढ़ रहे थे, उन्होंने देखा कि कुछ चरवाहे एक नागिन को जलाने की कोशिश कर रहे थे। तेजाजी ने नागिन को बचाया। नागिन ने कहा कि वह उसे डस देगी क्योंकि तेजाजी ने उसका नुकसान किया है।
तेजाजी ने कहा, “मैं अभी अपनी पत्नी को लेने जा रहा हूं, लौटकर आऊंगा तो तू मुझे डसना।”
नागिन ने कहा, “अगर तू वापस आ गया तो मैं तुझे डसूंगी।” और तेजाजी ने इसे अपना वचन माना।यह वचन ही उनकी कथा का प्रमुख भाग बन गया — वचन का पालन चाहे कुछ भी हो जाए।
पेमल से मिलना और डाकुओं से लड़ाई
ससुराल पहुँचकर तेजाजी ने पेमल को लिया। लेकिन पेमल की माँ ने उनका अपमान किया और घर में आने से मना किया। पेमल ने अपने पति के लिए बहादुरी दिखाई और उनके साथ चल पड़ी।
वचन निभाना: नागिन के पास लौटना
गायों को बचाकर तेजाजी जब नागिन के पास लौटे, तो पूरा शरीर घायल था। नागिन ने कहा कि वह केवल स्वस्थ शरीर को डसेगी।
तेजाजी ने कहा, “मेरी जीभ अभी भी स्वस्थ है, उसे डस ले।”
नागिन ने उनकी जीभ पर डसा और तेजाजी वहीं वीरगति को प्राप्त हुए।
वीर तेजाजी का देवत्व और लोकश्रद्धा
तेजाजी के इस बलिदान को देखकर नागिन ने उन्हें वरदान दिया कि जो कोई भी तेजाजी का नाम सच्चे मन से लेगा, उसे सर्पदंश का कोई असर नहीं होगा। इसीलिए राजस्थान और आसपास के क्षेत्रों में तेजाजी को सर्पों का देवता माना जाता है।
उनके मंदिर पूरे क्षेत्र में फैले हुए हैं। हर साल भाद्रपद शुक्ल दशमी को तेजादशमी का पर्व बड़े धूमधाम से मनाया जाता है। लोग उनकी पूजा करते हैं, व्रत रखते हैं और उनसे आशीर्वाद मांगते हैं।
पेमल का योगदान और नारी सम्मान
पेमल की भूमिका केवल तेजाजी की पत्नी की नहीं थी, बल्कि वे उस युग में नारी सम्मान की प्रतीक थीं। उन्होंने अपने पति के प्रति पूर्ण समर्पण दिखाया, और समाज के तानों और अपमान के बावजूद अपनी मर्यादा नहीं खोई।
उनका साहस यह दिखाता है कि परिवार और समाज में नारी का सम्मान कितना महत्वपूर्ण है। पेमल ने अपने पति की यात्रा में साथ दिया, और उनकी वीरता का समर्थन किया। यही कारण है कि लोकगीतों और कथाओं में पेमल को भी वीरांगना के रूप में याद किया जाता है।
लोकगीतों और सांस्कृतिक महत्व
राजस्थान, हरियाणा, और मध्यप्रदेश के लोकगीतों में वीर तेजाजी और पेमल की कथा गाई जाती है। इन गीतों में तेजाजी की वीरता, पेमल का साहस, और नागिन से हुआ वचन के पालन की महिमा गायी जाती है।
तेजाजी के मंदिरों में उत्सवों के दौरान झांकियां निकाली जाती हैं, और उनकी वीरता को नृत्य, नाटक और लोककथाओं के माध्यम से जीवित रखा जाता है।
आधुनिक समय में वीर तेजाजी की महत्ता
आज भी, तेजाजी की पूजा और कथा समाज में वचनबद्धता, नारी सम्मान, और सामाजिक न्याय की प्रेरणा देती है। वे हमें याद दिलाते हैं कि एक व्यक्ति का धर्म केवल अपने लिए नहीं, बल्कि समाज के लिए भी होना चाहिए।
पेमल और तेजाजी की कथा यह सिखाती है कि वचन का पालन, सत्य और धर्म की रक्षा ही सच्ची वीरता है। यह कथा पीढ़ी दर पीढ़ी सुनाई जाती है ताकि युवा लोग भी इन मूल्यों को समझें और अपनाएं।
वीर तेजाजी और उनकी पत्नी पेमल की कथा राजस्थान के लोकजीवन की अमूल्य धरोहर है। यह केवल एक वीर योद्धा की कहानी नहीं, बल्कि वचन, त्याग, और नारी सम्मान की महान गाथा है।
उनका जीवन हमें यह सिखाता है कि:
सच्चे वीर वह हैं जो अपने वचनों पर कभी नहीं टूटते।
नारी सम्मान समाज की नींव है।
धर्म और न्याय की रक्षा के लिए किसी भी बलिदान से पीछे नहीं हटना चाहिए।
इस कथा के माध्यम से हमें अपने सामाजिक और पारिवारिक दायित्वों को समझना चाहिए और उनकी रक्षा करनी चाहिए।