
तीन युवतियों ने सांसारिक मार्ग को छोड़कर साध्वी बनने का निर्णय लिया है। ये तीनों युवतियां पढ़ाई में होशियार और परिवार की लाडली बेटियां हैं। उन्होंने साध्वियों के साथ समय बिताया और 5 हजार किलोमीटर तक धार्मिक यात्राएं भी कीं।कोविड के समय में लगातार हो रही मौतों ने युवतियों के हृदय को परिवर्तित कर दिया। इस बीच साध्वियों ने संयम पथ के जरिए मोक्ष प्राप्ति का रास्ता बताया। तीनों युवतियां अब 16 फरवरी को बाड़मेर में दीक्षा लेंगी और साध्वी बन जाएंगी।

साक्षी बोली- इंजीनियर बनना था, लेकिन चुना संयम पथ
साक्षी सिंघवी ने अपने जीवन को पूरी तरह से बदलने का फैसला किया है। वह साध्वी बनने के लिए तैयार हैं और इसके लिए उन्होंने अपने परिवार को भी मना लिया है।साक्षी के पिता की मृत्यु 2015 में हुई थी और तब से उनके दो बड़े भाई घर की होलसेल जनरल स्टोर संभाल रहे हैं। साक्षी ने बीएससी में 86 प्रतिशत अंक प्राप्त किए थे और उनके पिता उन्हें इंजीनियर बनाना चाहते थे।हालांकि, कोरोना के कारण पढ़ाई में गैप आने के बाद साक्षी ने साध्वी दीप्ति प्रभा से मिलने का फैसला किया। वहां उन्होंने 10 दिनों तक रहीं और साध्वियों के जीवन, उनके धर्म और ध्यान से प्रभावित हुईं।साक्षी ने तय किया कि वह सांसारिक जीवन त्याग कर साध्वी बनना चाहती हैं। उन्होंने अपने परिवार को मना लिया और अब वह साध्वी बनने के लिए तैयार हैं।

भावना बोलीं- मन में वैराग्य जागा तो दीक्षा ली
भावना संखलेचा ने अपने जीवन को पूरी तरह से बदलने का फैसला किया है। वह साध्वी बनने के लिए तैयार हैं और इसके लिए उन्होंने अपने परिवार को भी मना लिया है।भावना ने बताया कि वह शुरू से धार्मिक प्रवृत्ति की रही हैं और उन्हें स्थानक जाना और संतों के प्रवचन सुनना अच्छा लगता था। जब उन्होंने साध्वी नित्यप्रभा और विद्युतप्रभा से मिलीं, तो उनके मन में वैराग्य भाव और मजबूत हो गया।भावना ने बताया कि उन्होंने करीब पांच साल पहले अपने परिवार को अपनी इच्छा जाहिर की थी, लेकिन उनके पिता ने मना कर दिया था। हालांकि, बाद में उनके पिता भी मान गए और उन्होंने गुरुकुलवास में रहना शुरू किया।भावना ने बताया कि उन्होंने साध्वियों के साथ करीब 5 हजार किलोमीटर तक पैदल धार्मिक यात्रा की है और उन्हें लगता है कि सांसारिक जीवन दिखावे का है। उन्होंने बताया कि मोक्ष के लिए मन को संयम पथ पर अग्रसर होना ही होगा, इसलिए उन्होंने दीक्षा लेने की ठानी है।

निशा ने कहा- लेक्चरर बनना था, लेकिन अब साध्वी बनूंगी
निशा बोथरा की कहानी भी साक्षी जैसी ही है। निशा ने बीकॉम की पढ़ाई की थी और लेक्चरर बनना चाहती थीं। लेकिन वर्ष 2020 में कोविड समय के दौरान साध्वी विद्युतप्रभा के संपर्क में आने के बाद उनके हृदय में परिवर्तन हो गया।निशा ने बताया कि साध्वी विद्युतप्रभा के प्रवचन सुनने के बाद उन्हें लगा कि कोविड में जिस तरह लोग मर रहे हैं, एक दिन वह भी इस दुनिया से चली जाएंगी। लेकिन मोक्ष प्राप्त करना है और आंतरिक खुशी चाहिए तो संयम पथ ही सबसे अच्छा है।निशा ने बताया कि उन्होंने करीब डेढ़ साल तक साध्वी विद्युतप्रभा और साध्वी दीप्तिप्रभा के पास आती-जाती रहीं और उनके साथ कई धार्मिक यात्रा पैदल कीं। जब उन्हें लगा कि वह संयम पथ पर चल सकती हैं तो उन्होंने घर पर अपनी मम्मी को बताया। पहले तो उनकी मम्मी वेराजी नहीं हुई, लेकिन बाद में मान गईं।
