
तुम कहोगे, रातऔर रात हो जाएगी।
तुम कहोगे, दिनऔर धुल जाएगा दिन।
तुम कहोगे, रंग और उड़ती चली आएँगी तितलियाँ पृथ्वी भर की।
तुम सोचेगे, प्रेमऔर दिगंत खोल देगा एक इंद्रधनुष गुप्त।
तुम होंगे संतप्त और जल जाएगी उसकी त्वचा दूसरे शहर में।
तुम कहोगे, रात और झरती चली जाएगी स्मृति।
तुम कहोगे, दिन और रिक्त हो जाएगी पृथ्वी।
तुम रहोगे, चुप और चटक जाएँगी शिलाएँ चंद्रमा तक।
तुम करोगे, अदेखा और वह जा फँसेगी अदृश्य हवा के कंठ में।
तुम कहोगे, रात और बनने लगेगा आप-ही-आप रेत में एक घर।
तुम कहोगे, दिन और उघड़ जाएगी यह देह जरा की कुतरी हुई।