बाड़मेर (राजस्थान) के सीमावर्ती इलाकों में शिक्षा की स्थिति बेहद चिंताजनक बनती जा रही है। यहां के लोग अभी तक शिक्षा का वास्तविक अर्थ नहीं समझ पाए हैं, और जिम्मेदार अधिकारी इस पर कोई ठोस कदम उठाने की बजाय पूरी तरह से बेपरवाह दिखाई दे रहे हैं। इस क्षेत्र में बढ़ते अंधविश्वास, जातिवाद, धर्मवाद और भ्रष्टाचार के प्रभाव से स्थिति और भी विकट हो गई है। इसके चलते न केवल आमजन का जीवन प्रभावित हो रहा है, बल्कि यहां के युवा भी असमय नशे, मादक पदार्थों की तस्करी और अन्य अवैध गतिविधियों में लिप्त हो रहे हैं।
शिक्षा के नाम पर हो रही खानापूर्ति
बाड़मेर जैसे पिछड़े और सीमावर्ती क्षेत्र में शिक्षा का स्तर दिन-ब-दिन गिरता जा रहा है। यहां के स्कूलों और कॉलेजों में न तो आवश्यक संसाधन उपलब्ध हैं, न ही पर्याप्त शिक्षक। अधिकांश स्कूलों में शिक्षक पद रिक्त हैं, जिससे बच्चों को गुणवत्तापूर्ण शिक्षा प्राप्त नहीं हो पा रही। इस क्षेत्र के विद्यार्थी सामान्य ज्ञान से भी वंचित हैं और उन्हें जीवन के बुनियादी पहलुओं के बारे में जानकारी तक नहीं मिल पाती।
निजी विद्यालयों में भी शिक्षा का अभाव
यहां तक कि निजी विद्यालयों में भी गुणवत्तापूर्ण शिक्षा का भारी अभाव है। फीस वसूलने के बावजूद, इन विद्यालयों में विद्यार्थियों को योग्य शिक्षकों की कमी और अत्यधिक प्राथमिक सुविधाओं की कमी का सामना करना पड़ता है। इस कारण विद्यार्थियों का भविष्य अंधकारमय हो रहा है और वे अपनी शिक्षा पूरी करने में सक्षम नहीं हो पा रहे।
बेरोजगारी और पलायन की समस्या
इस क्षेत्र में अधिकांश युवा बेरोजगार हैं और उनके पास न तो रोजगार के अवसर हैं और न ही शिक्षा के माध्यम से कोई बेहतर भविष्य बनाने का रास्ता। इस कारण कई युवा नशे और मादक पदार्थों की तस्करी जैसी गैरकानूनी गतिविधियों में शामिल हो रहे हैं। इसके साथ ही, यह युवा पलायन कर अन्य शहरों में मजदूरी करने को मजबूर हो रहे हैं, जिससे उनकी शिक्षा में और भी गिरावट आ रही है।
स्कूलों और कॉलेजों में संसाधनों की कमी
बाड़मेर जिले के अधिकांश विद्यालयों और कॉलेजों में आवश्यक बुनियादी संसाधनों का घोर अभाव है। कई स्कूलों में बुनियादी शौचालय, पीने का पानी, बैठने के लिए उचित सीटें और किताबें तक उपलब्ध नहीं हैं। परिणामस्वरूप, विद्यार्थियों को शिक्षा प्राप्त करने में भारी कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है।
समाज में बढ़ता अंधविश्वास और जातिवाद
यहां की सामाजिक स्थिति भी दयनीय है। अंधविश्वास, जातिवाद और धर्मवाद का प्रभाव गांवों और कस्बों में तेजी से बढ़ रहा है। इस कारण लोग अपनी शिक्षा पर कम ध्यान दे रहे हैं, और समाज में विकास की प्रक्रिया ठप हो गई है। इन सामाजिक समस्याओं का असर बच्चों की मानसिकता पर भी पड़ रहा है, जो आने वाले समय में उनके विकास को और भी प्रभावित कर सकता है।

सामाजिक और सरकारी जिम्मेदारी
यह स्थिति गंभीर है और इसमें सुधार के लिए सरकार को जल्द कदम उठाने होंगे। शिक्षा के बुनियादी ढांचे को मजबूत किया जाना चाहिए, और सरकारी अधिकारियों को क्षेत्रीय जरूरतों के अनुसार संसाधन मुहैया कराने चाहिए। इसके अलावा, समाज के हर वर्ग को जागरूक करने की आवश्यकता है, ताकि वे शिक्षा के महत्व को समझें और बच्चों को अच्छे अवसर देने के लिए आगे आएं।