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सोचो जरा… आप पेट दर्द से तड़पते हुए अस्पताल पहुंचे हों, और डॉक्टर स्टेथोस्कोप की जगह पूछे –
ब्लॉग पोस्ट:
सोचो जरा… आप पेट दर्द से तड़पते हुए अस्पताल पहुंचे हों, और डॉक्टर स्टेथोस्कोप की जगह पूछे –
“किसे वोट दिया?”
जी हां, राजस्थान के बाड़मेर जिले में कुछ ऐसा ही हुआ, और अब पूरा इंटरनेट इस पर चर्चा कर रहा है।
मरीज का नाम – नरसाराम, जो इलाज के लिए राजकीय मेडिकल कॉलेज अस्पताल पहुंचा था। लेकिन इलाज से पहले ही एक सवाल दाग दिया गया –
“वोट किसे दिया?”
नरसाराम बोले – “रविंद्र भाटी को।”
डॉक्टर मुस्कराए और बोले –
“फिर उसी से कहो मशीन लगवा दे, वोट उसी को दिया है ना!”
ये घटना सिर्फ एक तंज नहीं, एक बड़ी सच्चाई है –सरकारी अस्पतालों की हालत इतनी खराब हो गई है कि डॉक्टर खुद मरीजों को मशीनों की कमी गिना रहे हैं, और अब तो राजनीतिक ठप्पा भी लगाने लगे हैं।
राजनीति का ‘इलाज’ चालू हो गया
वीडियो वायरल हुआ, और इसके बाद शिव के विधायक रविंद्र सिंह भाटी तुरंत एक्टिव हो गए। उन्होंने न सिर्फ चिकित्सा मंत्री को पत्र लिखा, बल्कि अपनी विधायक निधि से सोनोग्राफी मशीन देने की पेशकश भी कर दी।
सोचने वाली बात ये है कि –क्या अब जनता को हर सरकारी सुविधा के लिए वोटिंग स्लिप साथ लेकर चलनी पड़ेगी?
मजेदार लेकिन गंभीर सवाल
1. क्या डॉक्टर मरीजों से इलाज से पहले पार्टी पूछेंगे?
2. क्या अस्पताल की मशीनें भी MLA को टैग करके ही आएंगी?
3. क्या अब इलाज का पर्चा भी ‘वोट बैंक’ से निकलेगा?
थोड़ी जानकारी – ज़रूरी भी है!
भारत में राइट टू हेल्थ एक मूलभूत अधिकार नहीं है, लेकिन कई राज्य इसे लागू करने की कोशिश कर रहे हैं।
राजस्थान सरकार ने 2023 में “Right to Health Act” पास किया था, जिसमें हर नागरिक को सरकारी व निजी अस्पतालों से मुफ्त इलाज का अधिकार मिलना चाहिए – लेकिन जमीनी सच्चाई अब भी कुछ और कहती है।
निष्कर्ष:
राजनीति और अस्पताल – ये दो शब्द जब एक साथ आते हैं, तो मरीजों की तकलीफें और बढ़ जाती हैं। बाड़मेर की घटना हमें ये सोचने पर मजबूर करती है कि क्या इलाज अब वोट पर निर्भर हो गया है?
हमें डॉक्टरों को याद दिलाना होगा कि उनका धर्म “चिकित्सा” है, राजनीति नहीं। और सरकारों को ये समझना होगा कि मशीनें घोषणा से नहीं, काम से लगती हैं।