बचपन पर संकट: ऑनलाइन होमवर्क के बहाने मोबाइल की लत का बढ़ता खतरा l

बचपन पर संकट: ऑनलाइन होमवर्क के बहाने मोबाइल फोन का उपयोग हद से ज्यादा कर रहे छात्र

आज की शिक्षा प्रणाली में तकनीक और इंटरनेट के बढ़ते प्रभाव ने बच्चों को शिक्षा के लिए स्मार्टफोन और अन्य डिजिटल माध्यमों पर निर्भर बना दिया है। हालांकि, इसका एक बड़ा दुष्परिणाम यह है कि स्कूल और अभिभावकों के बीच संवाद का साधन पूरी तरह डिजिटल बन गया है। स्कूल डायरी जैसी पारंपरिक व्यवस्था खत्म हो गई है, और हर सूचना व्हाट्सएप या अन्य सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म के जरिए दी जा रही है।

ऑनलाइन होमवर्क बच्चों को तकनीक की ओर आकर्षित कर रहा है, लेकिन इसके नकारात्मक परिणाम उनकी पढ़ाई और मानसिक स्वास्थ्य पर दिखने लगे हैं।

90% युवाओं के पास स्मार्टफोन: आंकड़े चिंताजनक

देशभर में हुए सर्वेक्षण के मुताबिक, लगभग 90% युवाओं के पास स्मार्टफोन है।

80% बच्चों ने पढ़ाई के लिए स्मार्टफोन का इस्तेमाल किया।

43.7% लड़कों और 19.8% लड़कियों के पास अपना स्मार्टफोन है।

87.8% लड़कियां और 90.5% लड़के पढ़ाई के नाम पर मोबाइल का उपयोग कर रहे हैं।

इस बढ़ते इस्तेमाल ने बच्चों को डिजिटल स्क्रीन की लत का शिकार बना दिया है।

मोबाइल से बच्चों पर पड़ने वाले नकारात्मक प्रभाव

विशेषज्ञों के मुताबिक, विभिन्न आयु वर्गों के बच्चों पर मोबाइल का अलग-अलग प्रभाव पड़ रहा है: 2 से 3 साल के बच्चे:

स्क्रीन पर ध्यान केंद्रित करने में परेशानी।

बच्चों के चेहरे के हाव-भाव (एक्सप्रेशन) पर असर। 3 से 6 साल के बच्चे:

सामाजिक कौशल की कमी।

दोस्तों से बातचीत की बजाय वीडियो देखने पर ज्यादा समय। 6 से 12 साल के बच्चे:

एडिक्टिव बिहेवियर विकसित हो रहा है।

सोशल मीडिया और गेम्स का अधिक प्रभाव। 12 साल और उससे ऊपर के बच्चे:

मानसिक तनाव और नींद की कमी।

देर रात तक मोबाइल उपयोग की आदत।

पढ़ाई पर असर और मानसिक स्वास्थ्य पर खतरा

शिक्षकों का कहना है कि ऑनलाइन होमवर्क ने बच्चों को मोबाइल पर निर्भर बना दिया है।

वे किताबों से पढ़ाई करने की बजाय गूगल और वीडियो की मदद लेते हैं।

इससे बच्चों का ध्यान लंबे समय तक किसी विषय पर केंद्रित नहीं हो पाता।

मोबाइल के ज्यादा इस्तेमाल से उनकी रचनात्मकता और आत्मनिर्भरता भी प्रभावित हो रही है।

एक रिपोर्ट के अनुसार, बच्चे अपनी पढ़ाई के बीच बार-बार सोशल मीडिया नोटिफिकेशन चेक करते हैं, जिससे ध्यान पूरी तरह भटक जाता है।

समाधान की दिशा में कदम

विशेषज्ञ और अभिभावक मानते हैं कि इस समस्या का समाधान केवल शिक्षा पद्धति में बदलाव से ही संभव है। पारंपरिक शिक्षा पद्धति अपनाएं:

होमवर्क को कागज और किताबों के माध्यम से देने की पुरानी व्यवस्था को फिर से लागू किया जाए।

ऑनलाइन क्लासेज और होमवर्क को सीमित किया जाए। मोबाइल का सीमित उपयोग:

बच्चों को मोबाइल का इस्तेमाल केवल एक निर्धारित समय तक करने दिया जाए।

मोबाइल के अलावा अन्य रचनात्मक गतिविधियों में बच्चों को व्यस्त किया जाए। अभिभावकों की भूमिका:

बच्चों के मोबाइल उपयोग पर सख्त निगरानी रखें।

रात के समय बच्चों को मोबाइल से दूर रखें।

बच्चों के साथ समय बिताएं और उन्हें डिजिटल डिटॉक्स की आदत सिखाएं।

होमवर्क पैटर्न में बदलाव की जरूरत

विशेषज्ञों का सुझाव है कि होमवर्क के नाम पर बच्चों को स्क्रीन से जोड़े रखने के बजाय:

ऐसे कार्य दिए जाएं जो लिखित हों और उनकी रचनात्मकता को प्रोत्साहित करें।

स्कूलों को डिजिटल और पारंपरिक शिक्षा का संतुलन बनाने की दिशा में कदम उठाने चाहिए।

निष्कर्ष:
बचपन को बचाने और बच्चों के मानसिक स्वास्थ्य को मजबूत रखने के लिए अभिभावकों, शिक्षकों और स्कूल प्रशासन को मिलकर काम करना होगा। शिक्षा और तकनीक के बीच सही संतुलन ही बच्चों के उज्जवल भविष्य की कुंजी है।

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