तबला वादक उस्ताद जाकिर हुसैन का निधनः 73 साल की उम्र में सैन फ्रांसिस्को में ली अंतिम सांस; 2023 में मिला था पद्म विभूषण

विश्वविख्यात तबला वादक और पद्म विभूषण उस्ताद जाकिर हुसैन का निधन हो गया है। उनके परिवार ने सोमवार सुबह इसकी पुष्टि की। जाकिर हुसैन इडियोपैथिक पल्मोनरी फाइब्रोसिस से पीड़ित थे और पिछले दो हफ्ते से सैन फ्रांसिस्को के अस्पताल में भर्ती थे। उनकी हालत ज्यादा बिगड़ने पर उन्हें आईसीयू में एडमिट किया गया था, जहां उन्होंने आखिरी सांस ली।

जाकिर हुसैन का जन्म 9 मार्च 1951 को मुंबई में हुआ था। उन्हें 1988 में पद्मश्री, 2002 में पद्म भूषण और 2023 में पद्म विभूषण से नवाजा गया था। उनके पिता का नाम उस्ताद अल्लारक्खा कुरैशी और मां का नाम बावी बेगम था। जाकिर के पिता अल्लारक्खा भी तबला वादक थे।

जाकिर हुसैन ने सिर्फ 11 साल की उम्र में अमेरिका में पहला कॉन्सर्ट किया था। 1973 में उन्होंने अपना पहला एल्बम ‘लिविंग इन द मटेरियल वरल्ड’ लॉन्च किया था। हुसैन को 2009 में पहला ग्रैमी अवॉर्ड मिला। 2024 में उन्होंने 3 अलग-अलग एल्बम के लिए 3 ग्रैमी जीते। इस तरह जाकिर हुसैन ने कुल 4 ग्रैमी अवॉर्ड अपने नाम किए।

रविवार देर रात निधन की गलत खबर आई थी

रविवार देर रात उस्ताद जाकिर हुसैन के निधन की खबर आई थी, लेकिन बाद में उनकी बहन और भांजे आमिर ने इस खबर को गलत बताया था। भारत के सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय ने भी निधन संबंधी पोस्ट शेयर की थी, लेकिन बाद में इसे हटा लिया गया था।हालांकि, सोमवार सुबह जाकिर हुसैन के परिवार ने उनके निधन की पुष्टि की। जाकिर हुसैन इडियोपैथिक पल्मोनरी फाइब्रोसिस से पीड़ित थे और पिछले दो हफ्ते से सैन फ्रांसिस्को के अस्पताल में भर्ती थे।

इडियोपैथिक पल्मोनरी फाइब्रोसिस फेफड़ों से जुड़ी बीमारी

इडियोपैथिक पल्मोनरी फाइब्रोसिस एक गंभीर बीमारी है जिसमें फेफड़ों के टिश्यू डैमेज हो जाते हैं। इससे सांस लेने में तकलीफ होती है और खून में पर्याप्त ऑक्सीजन नहीं पहुंचती।इस बीमारी के शुरुआती लक्षणों में सांस फूलना, गले में कफ आना और थकान महसूस होना शामिल हैं। जैसे-जैसे बीमारी बढ़ती है, फेफड़ों के टिश्यू और भी ज्यादा डैमेज होते हैं और शरीर के ऑर्गन्स तक ऑक्सीजन पहुंचने में दिक्कत आने लगती है।इडियोपैथिक पल्मोनरी फाइब्रोसिस का अभी तक कोई इलाज नहीं है, लेकिन इसके लक्षणों को नियंत्रित करने के लिए कई उपचार उपलब्ध हैं। इनमें ऑक्सीजन थेरेपी, फिजियोथेरेपी और दवाएं शामिल हैं।

सपाट जगह देखकर उंगलियों से धुन बजाने लगते थे उस्ताद जाकिर हुसैन

जाकिर हुसैन के अंदर बचपन से ही संगीत की गहरी समझ और धुन बजाने का हुनर था। वे कोई भी सपाट जगह देखकर उंगलियों से धुन बजाने लगते थे, चाहे वह किचन में बर्तन हों या फिर कोई अन्य वस्तु। उनकी यह प्रतिभा और रुचि ने उन्हें बाद में तबला वादक के रूप में स्थापित किया।जाकिर हुसैन के परिवार ने उनकी इस प्रतिभा को पहचाना और उन्हें संगीत की शिक्षा दिलाने का फैसला किया। उनके पिता उस्ताद अल्लारक्खा कुरैशी भी एक प्रसिद्ध तबला वादक थे, और उन्होंने जाकिर हुसैन को संगीत की शिक्षा दी। जाकिर हुसैन ने अपने पिता से सीखकर तबला वादन में महारत हासिल की और बाद में विश्व प्रसिद्ध तबला वादक बने।

उस्ताद जाकिर हुसैन 7 बार ग्रैमी अवॉर्ड के लिए नॉमिनेट हुए थे, 4 बार पुरस्कार जीता।

तबले को अपनी गोद में रखते थे जाकिर हुसैन

उस्ताद जाकिर हुसैन के शुरुआती दिनों में उनकी आर्थिक स्थिति अच्छी नहीं थी। वे अक्सर ट्रेन में यात्रा करते थे और पैसों की कमी के कारण जनरल कोच में चढ़ जाते थे।जनरल कोच में सीट न मिलने पर वे फर्श पर अखबार बिछाकर सो जाते थे। लेकिन उनका तबला हमेशा उनके साथ रहता था। वे तबले को अपनी गोद में लेकर सो जाते थे, ताकि किसी का पैर उस पर न लगे।यह उनकी संगीत के प्रति समर्पण और तबले के प्रति उनके प्यार को दर्शाता है। उस्ताद जाकिर हुसैन ने अपने जीवन में कई चुनौतियों का सामना किया, लेकिन उन्होंने कभी हार नहीं मानी और अपने संगीत के प्रति समर्पण को बनाए रखा।

12 साल की उम्र में 5 रुपए मिले थे

उस्ताद जाकिर हुसैन के जीवन की एक दिलचस्प कहानी है जब वे 12 साल के थे। उस समय वे अपने पिता के साथ एक कॉन्सर्ट में गए थे, जिसमें संगीत की दुनिया के कई दिग्गज कलाकार मौजूद थे, जिनमें पंडित रविशंकर, उस्ताद अली अकबर खान, बिस्मिल्लाह खान, पंडित शांता प्रसाद और पंडित किशन महाराज शामिल थे।जाकिर हुसैन अपने पिता के साथ स्टेज पर गए और परफॉर्मेंस के बाद उन्हें 5 रुपये मिले। उस्ताद जाकिर हुसैन ने एक इंटरव्यू में इस घटना का जिक्र करते हुए कहा था कि वे 5 रुपये उनके जीवन में सबसे कीमती थे, क्योंकि वे उनके संगीत करियर की शुरुआत का प्रतीक थे।

उस्ताद जाकिर हुसैन को बराक ओबामा ने व्हाइट हाइस में एक कॉन्सर्ट में इनवाइट किया था।

ओबामा ने व्हाइट हाउस में कॉन्सर्ट के लिए न्योता भेजा था

अमेरिका में भी जाकिर हुसैन को बहुत सम्मान मिला। उन्हें 2016 में पूर्व अमेरिकी राष्ट्रपति बराक ओबामा ने ऑल स्टार ग्लोबल कॉन्सर्ट में भाग लेने के लिए व्हाइट हाउस में आमंत्रित किया था। यह सम्मान पाने वाले वे पहले भारतीय संगीतकार थे

शशि कपूर के साथ हॉलीवुड फिल्म में एक्टिंग की

जाकिर हुसैन ने न केवल संगीत में अपनी प्रतिभा दिखाई, बल्कि उन्होंने कुछ फिल्मों में भी अभिनय किया। उनकी पहली फिल्म 1983 में आई ब्रिटिश फिल्म “हीट एंड डस्ट” थी, जिसमें शशि कपूर ने भी काम किया था। इसके अलावा, उन्होंने 1998 में आई फिल्म “साज” में शबाना आजमी के साथ काम किया था।एक दिलचस्प तथ्य यह है कि जाकिर हुसैन को फिल्म “मुगल-ए-आजम” (1960) में सलीम के छोटे भाई का रोल ऑफर हुआ था, लेकिन उनके पिता उस्ताद अल्लारक्खा ने फिल्म में काम करने से इनकार कर दिया, क्योंकि वे चाहते थे कि उनका बेटा संगीत पर ही ध्यान दे। ¹

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