
राजस्थान हाईकोर्ट ने लिव-इन रिलेशनशिप को लेकर एक ऐतिहासिक फैसला सुनाया है। कोर्ट ने कहा कि कानून की नजर में लिव-इन रिलेशनशिप अवैध नहीं है, लेकिन देश में इस पर कोई स्पष्ट कानून न होने के कारण कई कानूनी और सामाजिक समस्याएं उत्पन्न हो रही हैं। इसलिए, अदालत ने केंद्र और राज्य सरकारों को इस विषय पर उचित कानून बनाने के निर्देश दिए हैं।
कोर्ट ने लिव-इन रिलेशनशिप पर कानून बनाने की जरूरत बताई
जस्टिस अनूप ढंड की एकलपीठ ने कहा कि लिव-इन रिलेशनशिप को भारतीय समाज में अभी भी पूरी तरह से स्वीकार्यता नहीं मिली है, लेकिन इसका मतलब यह नहीं कि यह गैरकानूनी है। चूंकि इस मुद्दे पर कोई स्पष्ट कानून नहीं है, इसलिए विभिन्न अदालतों के अलग-अलग निर्णयों के कारण लोग भ्रमित हो जाते हैं।
अदालत ने अपने आदेश में कहा:
1. लिव-इन रिलेशनशिप पर एक स्पष्ट कानून बनाया जाए, ताकि ऐसे रिश्तों में रहने वाले जोड़ों के अधिकार और दायित्व तय किए जा सकें।
2. प्रत्येक जिले में एक प्राधिकरण (Authority) स्थापित किया जाए, जो लिव-इन रिलेशनशिप से जुड़ी शिकायतों का निवारण करे।
एक वेब पोर्टल या वेबसाइट विकसित की जाए, जिससे इस तरह के रिश्तों में उत्पन्न विवादों का समाधान किया जा सके।
ऐसे रिश्तों में महिलाओं और बच्चों को कानूनी सहायता प्रदान करने के लिए अलग कानून बनाया जाए।

लिव-इन में रह रहे विवाहित व्यक्तियों को संरक्षण देने पर कोर्ट ने जताई चिंता
हाईकोर्ट ने यह भी स्पष्ट किया कि लिव-इन रिलेशनशिप का मुद्दा और भी जटिल हो जाता है जब इसमें पहले से विवाहित व्यक्ति शामिल होते हैं। कई मामलों में, कोर्ट से सुरक्षा मांगने वाले जोड़े पहले से ही शादीशुदा होते हैं, लेकिन अपने वैवाहिक संबंधों को समाप्त किए बिना किसी अन्य व्यक्ति के साथ लिव-इन रिलेशनशिप में रहते हैं।
कोर्ट ने किन सवालों को लार्जर बेंच को रेफर किया?
चूंकि इस विषय पर राजस्थान हाईकोर्ट की अलग-अलग बेंचों के भिन्न-भिन्न दृष्टिकोण रहे हैं, इसलिए कोर्ट ने इसे लार्जर बेंच को रेफर करने का निर्णय लिया। मुख्य प्रश्न यह हैं:
• क्या एक विवाहित व्यक्ति, बिना अपने विवाह को समाप्त किए, किसी अन्य अविवाहित व्यक्ति के साथ लिव-इन रिलेशनशिप में रह सकता है और उसे न्यायालय से संरक्षण मिल सकता है?
• क्या दो विवाहित व्यक्ति, अपने-अपने विवाह को समाप्त किए बिना, एक-दूसरे के साथ लिव-इन रिलेशनशिप में रह सकते हैं और वे न्यायालय से संरक्षण आदेश प्राप्त करने के हकदार हैं?
पहले कोर्ट के अलग-अलग फैसले
1.इस मुद्दे पर हाईकोर्ट की अलग-अलग बेंचों के विरोधाभासी निर्णय आए हैं।
2.कुछ मामलों में कोर्ट ने सुरक्षा दी है, जबकि
3.कुछ मामलों में कोर्ट ने सुरक्षा देने से इनकार कर दिया है।
4.इस भ्रम को दूर करने के लिए, अब इस संवैधानिक और कानूनी प्रश्न का निपटारा लार्जर बेंच करेगी।
महिला और बच्चों के अधिकारों के लिए कानून की जरूरत
अदालत ने यह भी कहा कि लिव-इन रिलेशनशिप से जन्मे बच्चों की शिक्षा, स्वास्थ्य और पालन-पोषण की जिम्मेदारी तय करने के लिए एक विशेष कानून बनाया जाना चाहिए।
इसके अलावा, ऐसे संबंधों में रहने वाली महिलाओं की सुरक्षा और अधिकारों को सुनिश्चित करने के लिए कानूनी प्रावधान किए जाने चाहिए, ताकि वे किसी भी प्रकार के शोषण से बच सकें।
कोर्ट ने सरकार को दिए निर्देश
हाईकोर्ट ने इस आदेश की कॉपी मुख्य सचिव, प्रमुख शासन सचिव (विधि) और केंद्रीय सचिव को भेजने के निर्देश दिए हैं। इसके साथ ही, 1 मार्च तक इस आदेश की अनुपालना रिपोर्ट पेश करने को कहा गया है।