सुप्रीम कोर्ट का अहम् फैसला।कोर्ट मे पेश नही होना अपने आप मे एक अपराध

नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट ने एक महत्वपूर्ण निर्णय में यह माना है कि उद्घोषणा के जवाब में गैर-हाजिर होना एक स्वतंत्र अपराध है और यह स्थिति तब भी जारी रह सकती है जब सीआरपीसी की धारा 82 के तहत उद्घोषणा समाप्त हो जाती है। इस फैसले में न्यायमूर्ति सीटी रविकुमार और संजय करोल की पीठ ने यह तय किया कि यदि कोई आरोपी अदालत के समक्ष पेश नहीं होता, तो वह अपराधी माने जाते हैं और इस पर कार्यवाही की जा सकती है।

सुप्रीम कोर्ट की पीठ ने क्या कहा?

पीठ ने कानूनी सवालों की जांच की, जिसमें यह भी शामिल था कि क्या सीआरपीसी के प्रावधानों के तहत किसी आरोपी की उद्घोषित अपराधी की स्थिति तब भी बनी रह सकती है जब ऐसा आरोपी उसी अपराध के सिलसिले में मुकदमे के दौरान बरी हो जाता है। इसके साथ ही, पीठ ने यह भी जांचा कि क्या सीआरपीसी की धारा 82 के तहत उद्घोषणा का अस्तित्व समाप्त होने के बाद भी इस पर कार्यवाही जारी रखी जा सकती है।

न्यायालय का निर्णय:

2 जनवरी को दिए गए फैसले में, सुप्रीम कोर्ट ने यह स्पष्ट किया कि यदि कोई व्यक्ति उद्घोषणा के तहत निर्दिष्ट स्थान और समय पर अदालत में उपस्थित नहीं होता, तो उसके खिलाफ कार्रवाई की जा सकती है। इस मामले में धारा 174ए आईपीसी लागू होती है, जो कि उद्घोषणा के बाद भी उस व्यक्ति के खिलाफ कार्यवाही की अनुमति देती है, भले ही उद्घोषणा अब प्रभावी न हो।

क्या कहती है धारा 174ए आईपीसी?

धारा 174ए आईपीसी, जो कि भारतीय दंड संहिता के तहत आती है, एक स्वतंत्र अपराध को परिभाषित करती है। यदि कोई व्यक्ति उद्घोषणा के बाद अदालत में पेश नहीं होता, तो यह धारा उसके खिलाफ अपराध की कार्यवाही शुरू करने का आधार बनती है। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि यह अपराध सीआरपीसी की धारा 82 से स्वतंत्र है, और धारा 82 के प्रभाव समाप्त होने के बाद भी व्यक्ति के खिलाफ कार्यवाही जारी रह सकती है।

सुप्रीम कोर्ट का निष्कर्ष:

सुप्रीम कोर्ट ने निष्कर्ष निकाला कि धारा 174ए आईपीसी एक स्वतंत्र अपराध है, जिसे सीआरपीसी की धारा 82 के प्रभाव समाप्त होने के बावजूद लागू किया जा सकता है। पीठ ने यह भी कहा कि यह अपराध एक मौलिक अपराध है जो उद्घोषणा के जवाब में अदालत में पेश न होने पर उत्पन्न होता है, और इसके लिए दंडात्मक परिणामों का प्रावधान है।

सर्वोच्च न्यायालय का यह निर्णय पंजाब और हरियाणा उच्च न्यायालय के जून 2023 के निर्णय को चुनौती देने वाली अपील पर आया था।

इस फैसले से यह साफ हो गया है कि अदालतों के समक्ष पेश न होना अब एक स्वतंत्र अपराध माना जाएगा, और इसके लिए संबंधित व्यक्ति के खिलाफ कार्यवाही की जा सकती है।

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