
गोडावण, जिसे ग्रेट इंडियन बस्टर्ड (Great Indian Bustard) भी कहा जाता है, भारत के सबसे संकटग्रस्त पक्षियों में से एक है। कभी थार के रेगिस्तान में बड़ी संख्या में दिखाई देने वाला यह पक्षी अब विलुप्ति के कगार पर है। ऐसे समय में जैसलमेर स्थित गोडावण प्रजनन एवं अनुसंधान केंद्र से आई एक सकारात्मक खबर ने संरक्षणकर्ताओं और पर्यावरण प्रेमियों को नई आशा दी है।
बीकानेर सेंटर में 4 नए गोडावणों का जन्म
हाल ही में इस केंद्र में कृत्रिम गर्भाधान तकनीक के जरिए चार नए गोडावण चूजों का जन्म हुआ है। ये चूजे 11, 12, 13 और 27 अप्रैल 2025 को जन्मे हैं। इनके जन्म के साथ ही इस केंद्र में कुल गोडावणों की संख्या बढ़कर 59 हो गई है, जिनमें 24 नर, 24 मादा और 11 चूजे शामिल हैं।
इस साल अब तक 15 चूजों का जन्म
साल 2025 की शुरुआत से अब तक कुल 15 गोडावण चूजे जन्म ले चुके हैं। यह संख्या पिछले वर्षों की तुलना में कहीं अधिक है और यह संकेत देती है कि संरक्षण की दिशा में हो रहे प्रयास फल देने लगे हैं।
2019 से शुरू हुई तकनीक, 2021 में पहली सफलता
गोडावण के कृत्रिम गर्भाधान की प्रक्रिया 2019 में शुरू की गई थी। इसके तहत पहली सफलता 2021 में मिली थी। अब हर वर्ष इस तकनीक की मदद से नए चूजों का जन्म संभव हो रहा है।
100 गोडावणों का लक्ष्य
केंद्र के अधिकारियों और विशेषज्ञों का कहना है कि अगर सब कुछ इसी प्रकार चलता रहा तो वर्ष 2025 के अंत तक गोडावणों की संख्या 100 तक पहुंच सकती है। यह आंकड़ा न केवल सांख्यिकीय रूप से बल्कि जैव विविधता की दृष्टि से भी अत्यंत महत्वपूर्ण होगा।
पर्यावरण संरक्षण के लिए महत्वपूर्ण कदम
गोडावण भारत का राष्ट्रीय पक्षी बनने का भी दावेदार रह चुका है, लेकिन इसकी घटती संख्या ने चिंता बढ़ा दी थी। यह पक्षी मुख्य रूप से राजस्थान के थार रेगिस्तान में पाया जाता है और इसका अस्तित्व स्थानीय पारिस्थितिकी तंत्र के लिए भी आवश्यक है।
निष्कर्ष
जैसलमेर के प्रजनन केंद्र में कृत्रिम गर्भाधान तकनीक से गोडावणों का सफल जन्म एक बड़ी उपलब्धि है। यह न केवल जैव विविधता को बचाने की दिशा में एक प्रेरक उदाहरण है, बल्कि यह दिखाता है कि यदि वैज्ञानिक सोच, सरकार की इच्छाशक्ति और संरक्षण प्रयास एकजुट हो जाएं, तो हम संकटग्रस्त प्रजातियों को भी एक बार फिर जीवनदान दे सकते हैं।
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