
कभी-कभी जीवन में जब हम अपने लक्ष्यों को प्राप्त नहीं कर पाते, तो कहते हैं – मैं असफल रहा, मैंने हार मान ली। खुद को असफल कहना अपने प्रति अन्याय करने जैसा है। इसलिए खुद को हमेशा सच में सफल मानना शुरू करें। लेकिन वास्तविकता में जब हम अपने प्लान के मुताबिक परिणाम नहीं पाते, तो खुद को असफल मान लेते हैं। अतः हमें सफलता के मूल को समझना अतिआवश्यक है।
कभी-कभी जीवन में जब हम अपने लक्ष्यों को प्राप्त नहीं कर पाते, तो कहते हैं – मैं असफल रहा, मैंने हार मान ली। खुद को असफल कहना अपने प्रति अन्याय करने जैसा है। इसलिए खुद को हमेशा सच में सफल मानना शुरू करें। लेकिन वास्तविकता में जब हम अपने प्लान के मुताबिक परिणाम नहीं पाते, तो खुद को असफल मान लेते हैं। अतः हमें सफलता के मूल को समझना अतिआवश्यक है।
सफलता यह नहीं है कि आप क्या करते हैं, सफलता यह है कि आप कौन हैं। यह “मैं” के बारे में है- मैं, वह आत्मा, जो सोचती है, महसूस करती है, बोलती है, व्यवहार करती है, हर कार्य पूरा करती है और लक्ष्यों को प्राप्त करती है। सफलता “मैं” आत्मा से शुरू होती है, कर्म से नहीं। अर्थात सफलता आत्मा की पहचान होनी चाहिए नाकि शरीर की।
अगर आप दुखी, परेशान, क्रोधित या अहंकारी हैं और बाहरी दुनिया में अपनी इच्छाएं पूरी करते हैं, तो क्या आप खुद को सफल कह सकते हैं? यह संभव नहीं है क्योंकि आप खुद से खुश नहीं हैं।
याद रखें, वास्तव में आप सफल तब हैं जब आप खुश, दयालु और करुणामय हैं। आप सफल हैं यदि आप लोगों से जुड़ते हैं, चाहे उनकी उपलब्धियां, पद या उम्र कुछ भी हो। आप सफल हैं यदि आप अपने ज्ञान को बांटते हैं और दूसरों के साथ सहयोग करते हैं।
जब आप आत्मिक स्तर पर सफल हैं और बाहरी दुनिया में कर्म करते हैं, तो आप अपनी उपलब्धियों का आनंद लेते हैं। अगर आपको वह नहीं मिलता जो आप चाहते थे, तो भी याद रखें, कि आप सफल हैं। बस वह उपलब्धि मिलना अभी बाकी है। आपके पास दोबारा कोशिश करने और पाने की ऊर्जा होगी।