प्रकृति के बाद ईश्वर ने इस दुनिया में अपने सबसे शानदार हस्ताक्षर स्त्री के रूप में किया है। शायद इसी कारण प्रकृति, शक्ति, ममता, माया, क्षमा, तपस्या, आराधना ये सब शब्द स्त्रीलिंग हैं! स्त्रियों पर सुनी-पढ़ी हज़ारों, लाखों रचनाओं के ऊपर तैरती सी लगती है महाकवि जयशंकर प्रसाद की नारी को लेकर यह परिभाषा, अन्तर्राष्ट्रीय महिला दिवस की पूर्व-संध्या पर आप तक –
क्या कहती हो ठहरो नारी!
संकल्प-अश्रु जल से ,
अपने तुम दान कर चुकी,
पहले ही जीवन के सोने-से सपने।
नारी! तुम केवल श्रद्धा हो ,
विश्वास-रजत-नग पगतल में,
पीयूष-स्रोत सी बहा करो ,
जीवन के सुंदर समतल में।
देवों की विजय,
दानवों की हारों का होता युद्ध रहा,
संघर्ष सदा उर-अंतर में,
जीवित रह नित्य-विरुद्ध रहा।
आँसू से भीगे ,
अंचल पर मन का ,
सब कुछ रखना होगा।
तुमको अपनी स्मित रेखा से ,
यह संधिपत्र लिखना होगा।
यह संधिपत्र लिखना होगा।,,
Kya Kehti Ho ,
Thehro Naari,
Sankalp-Ashru Jal Se Apne,
Tum Daan Kar Chuki ,
Pehle HiJeevan Ke Sone-se Sapne
Naari! Tum Kewal Shraddha Ho,
Vishwas-Rajat-Nag Pagtal Mein,
Piyush-Srot Si Baha Karo,
Jeevan Ke Sundar Samtal Mein
Devon Ki Vijay,
Daanavon Ki Haaron Ka Hota Yuddh Raha
Sangharsh Sada Ur-Antar Mein,
Jeevit Reh Nitya-Viruddh Raha
Aansu Se Bheege Anchal Par
Man Ka Sab Kuch Rakhna Hoga
Tumko Apni Smit Rekha Se
Yeh Sandhipatra Likhna Hoga
Yeh Sandhipatra Likhna Hoga
Lyrics : Jaishankar Prasad
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