
गाँव के एक छोटे से घर में रहने वाली सुमित्रा देवी की ज़िंदगी संघर्षों से भरी थी। उनके पति का देहांत तब हो गया जब उनका बेटा अभिषेक केवल पाँच साल का था। पति की मृत्यु के बाद उनकी दुनिया जैसे उजड़ गई। घर में कमाने वाला कोई नहीं था, और समाज के ताने अलग से। लेकिन उन्होंने हिम्मत नहीं हारी।
संघर्षों से भरी राह
सुमित्रा देवी को मजबूरी में दूसरों के घरों में काम करना पड़ा। कभी बर्तन धोतीं, कभी कपड़े, तो कभी झाड़ू-पोछा। दिनभर मेहनत करने के बाद भी मुश्किल से दो वक्त की रोटी जुटा पातीं। पड़ोसी और रिश्तेदार उन्हें ताने मारते—”क्या कर लेगा तुम्हारा बेटा? नौकर ही बनेगा!” लेकिन वे जानती थीं कि उनका बेटा कुछ बड़ा करेगा।
अभिषेक माँ की मेहनत देखकर दिन-रात पढ़ाई करता। वह समझ चुका था कि अगर गरीबी से निकलना है, तो पढ़ाई ही एकमात्र रास्ता है। उसकी माँ ने हमेशा उसे प्रेरित किया, “बेटा, हालात कैसे भी हों, अगर तुम खुद पर विश्वास रखोगे, तो जीत तुम्हारी ही होगी।”
पहली सफलता की ओर
अभिषेक को स्कूल में हमेशा अच्छे नंबर मिलते थे। लेकिन आगे की पढ़ाई के लिए पैसे नहीं थे। जब गाँव के एक शिक्षक को उसकी लगन का पता चला, तो उन्होंने उसकी फीस भरने का फैसला किया। सुमित्रा देवी भी दिन-रात मेहनत कर पैसे जुटाने लगीं।
बारहवीं की परीक्षा में अभिषेक ने पूरे जिले में टॉप किया। यह खबर पूरे गाँव में फैल गई। जो लोग कभी ताने मारते थे, वही अब उसकी माँ की तारीफ करने लगे। लेकिन यह तो सिर्फ शुरुआत थी।
सफलता की ऊँचाई पर
अभिषेक ने एक प्रतिष्ठित इंजीनियरिंग कॉलेज में दाखिला लिया। कॉलेज की फीस और रहने का खर्च उठाना आसान नहीं था, लेकिन सुमित्रा देवी ने अपने गहने बेच दिए और कुछ पैसे उधार लेकर बेटे को पढ़ाई का मौका दिया।
कॉलेज में भी अभिषेक ने कड़ी मेहनत की। अपनी प्रतिभा और मेहनत के दम पर उसे एक अच्छी कंपनी में नौकरी मिली। पहली तनख्वाह मिलने के बाद उसने सबसे पहले अपनी माँ के लिए एक नई साड़ी खरीदी और उनके पैर छूकर कहा, “माँ, आपकी मेहनत रंग लाई।”
माँ का गौरव
कुछ ही वर्षों में अभिषेक एक सफल इंजीनियर बन गया। अब वह अपनी माँ को आराम की ज़िंदगी देना चाहता था। उसने एक नया घर खरीदा और अपनी माँ को वहाँ ले गया। आज सुमित्रा देवी गर्व से कहती हैं, “मेरा बेटा मेरी सबसे बड़ी कमाई है।”
प्रेरणा की कहानी
सुमित्रा देवी की यह कहानी हमें सिखाती है कि संघर्ष चाहे कितना भी बड़ा क्यों न हो, अगर हिम्मत, मेहनत और विश्वास हो, तो सफलता ज़रूर मिलती है। गरीबी, समाज के ताने और मुश्किल हालात भी किसी को आगे बढ़ने से नहीं रोक सकते, बस ज़रूरत होती है सच्ची मेहनत और दृढ़ निश्चय की।