
कमलेश एनकाउंटर केस: पुलिस और राजनीति के गठजोड़ पर कोर्ट की सख्ती
राजस्थान के बाड़मेर जिले में कमलेश परजापत एनकाउंटर केस ने एक बार फिर न्याय व्यवस्था, पुलिस और राजनीति के रिश्तों पर बड़ा सवाल खड़ा कर दिया है। 22 अप्रैल 2025 को “बाड़मेर भास्कर” में प्रकाशित खबर के मुताबिक, जोधपुर के अतिरिक्त मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट (CBI कोर्ट) ने 2 IPS अफसरों समेत 24 पुलिसकर्मियों के खिलाफ हत्या का मुकदमा दर्ज करने के आदेश दिए हैं। साथ ही CBI को दो महीने में जांच रिपोर्ट सौंपने को कहा है।
क्या है पूरा मामला?
4 साल पहले, कमलेश परजापत की कथित मुठभेड़ में मौत हो गई थी। पुलिस ने इसे एनकाउंटर बताया था, लेकिन परिवार और स्थानीय लोगों ने इसे फर्ज़ी एनकाउंटर बताया और न्याय के लिए लगातार आवाज़ उठाई।
अब कोर्ट ने इस मामले में पुलिस के साथ-साथ राजनीतिक हस्तियों की भूमिका की भी जांच के निर्देश दिए हैं।
राजनीतिक हस्तक्षेप: हीरा चौधरी और मनीष चौधरी का नाम जांच में

कोर्ट ने स्पष्ट रूप से कहा है कि इस मामले में MLA हीरा चौधरी और उनके भाई मनीष चौधरी की भूमिका की जांच की जाए। यह पहली बार है जब इस केस में किसी राजनेता का नाम सीधे तौर पर सामने आया है, जो यह दर्शाता है कि इस एनकाउंटर के पीछे राजनीतिक साजिश की आशंका भी गहराई से जुड़ी हुई है।
प्रशासनिक जवाबदेही की शुरुआत?
इस केस में शामिल पुलिसकर्मी न सिर्फ निचले स्तर के हैं, बल्कि 2 IPS अधिकारी भी जांच के घेरे में आए हैं:
इन पर आरोप है कि उन्होंने कानून का दुरुपयोग करते हुए एक निर्दोष व्यक्ति को साजिश के तहत मार गिराया।
यह सवाल भी उठ रहा है कि क्या ये एनकाउंटर किसी को बचाने या किसी के इशारे पर किया गया?
कमलेश का परिवार: 4 साल की लड़ाई का परिणाम
कमलेश के परिवार ने लगातार इस एनकाउंटर को न्यायिक जांच के लिए उठाया। आज कोर्ट के फैसले से उन्हें राहत मिली है और उम्मीद भी जगी है कि शायद अब सच्चाई सामने आएगी।
समाज और जनता की भूमिका
इस केस ने यह साबित कर दिया कि अगर समाज जागरूक रहे और आवाज़ उठाए, तो सिस्टम को जवाबदेह बनाया जा सकता है। सोशल मीडिया और जनता के दबाव के चलते ही यह मामला अब कोर्ट की नजरों में पूरी गंभीरता से लिया गया।
निष्कर्ष:
कमलेश एनकाउंटर केस अब सिर्फ एक हत्या का मामला नहीं, बल्कि यह सिस्टम, सत्ता और समाज के टकराव की कहानी बन चुका है। कोर्ट का यह आदेश उस दिशा में पहला बड़ा कदम है, जहाँ से न्याय की उम्मीद की जा सकती है।
अब सवाल ये है — क्या CBI निष्पक्ष जांच कर पाएगी? क्या दोषियों को सज़ा मिलेगी? और सबसे जरूरी — क्या ऐसे फर्ज़ी एनकाउंटर दोबारा नहीं होंगे?