
कुछ पुरुष कभी कर ही नहीं पाए प्रेम के स्वरूप पर विश्वास…
ये वो पुरुष थे जो अपनी युवावस्था में ही बन गए थे जिम्मेदार अपनी परिवार की आर्थिक स्थिति को कंधा देने के लिए ..
इनको मिला ही नहीं समय प्रेम की वर्तनी समझने का….
ये वो पुरुष थे जो सहज स्वभाव के कारण कर ही नहीं पाए प्रणय निवेदन ..
सिर्फ इस भय से की कही अस्वीकार्य न कर दिए जाएं इनके निश्चल भाव
इनके जीवन में ठहरा ही नहीं प्रेम…
ये वो पुरुष थे जो छले गए प्रेम के नाम पर …
जिन्होंने बिना सोचे समझे मान लिया किसी को अपना और पूर्ण समर्पित भाव से कर दिया अर्पण अपना अनंत प्रेम और दुत्कारे गए उसी के हाथों …
इस तरह ठगे गए प्रेम के नाम पर …
और खो बैठे विश्वास ….
ये वो पुरुष थे जिन्होंने नहीं मिलाई किसी की हां में हां!
सही को सही और गलत को गलत ही कहा !
जिन्हें अपना परिवार सर्वोपरि लगा ..
जिन्होंने अपनी मां के सम्मान को दी प्राथमिकता ….
और छोड़ दिए गए अपनी पत्नी और प्रेमिका के द्वारा…
जिनके लिए प्रेम अभिवादन.. प्रेम निवेदन ..प्रेम प्रशंसा..
से पहले था …
आत्म मंथन..आत्म सम्मान..आत्म विवेचन….
कुछ पुरुष कभी कर ही नहीं पाए प्रेम के स्वरूप पर कभी विश्वास