क्रिकेटर नहीं, तूफ़ान था. आता था, तबाही मचाता था, चला जाता था


सनथ जयसूर्या: जिसने आज से 28 साल पहले 17 गेंदों में 50 रन ठोके थे, 1996 के सिंगर कप का फाइनल. श्रीलंका और पाकिस्तान के बीच. श्रीलंका दूसरी पारी में बैटिंग कर रही थी. पहली 31 गेंदों में ही स्कोर-बोर्ड पर 70 रन टंग चुके थे. यहां पर पहला विकेट गिरा. रोमेश कालुवितरना आउट हो गए थे. जीरो रन बना के. जी हां, सही पढ़ा आपने. टीम के 70 रन के स्कोर पर जो एक ओपनिंग बैट्समैन आउट हुआ, उसका स्कोर ज़ीरो था. एक्स्ट्रा के 4 रन छोड़ के बाकी के सारे रन दूसरे बल्लेबाज़ ने बनाए थे.
वो विस्फोटक बल्लेबाज़ था सनथ जयसूर्या. वो खिलाड़ी, जिसने श्रीलंकाई क्रिकेट को अंडरडॉग्स से चैंपियंस तक का सफ़र करवाया.वन डे क्रिकेट में तलवारबाज़ी की शुरुआत
क्रिकेट की दुनिया में टेस्ट क्रिकेट से अगला पड़ाव था एकदिवसीय मैच. पहले 60 और फिर 50 ओवर का खेल. टेस्ट के हैंगओवर से बरसों तक आज़ाद न हो सका ये फॉर्मेट. सभी टीमों की ये रणनीति हुआ करती थी कि पहले नई बॉल को सावधानी से खेलकर उसका डंक निकाला जाए. विकेट बचाए जाएं. उसके बाद अंत में तेज़ी से रन बटोर कर अच्छा स्कोर खड़ा कर लें. लगभग इसी ढर्रे पर वन डे क्रिकेट बरसों तक चला.
फिर जयसूर्या आए. और उन्होंने इस गेम की दशा-दिशा ही बदल दी.वर्ल्ड-कप में काटा ग़दर
साल था 1996. क्रिकेट का वर्ल्ड कप चल रहा था. श्रीलंका ऐसी टीम थी जिसे कोई गंभीरता से नहीं लेता था. लेकिन उसी श्रीलंका ने बिना एक भी मैच गंवाए वर्ल्ड कप जीत लिया. कैसे हुआ ये चमत्कार? ये मुमकिन हुआ एक अनोखी रणनीति के चलते. शुरुआती ओवर्स में संभल कर खेलने की परिपाटी को श्रीलंका के ओपनर्स सनथ जयसूर्या और रोमेश कालुवितरना ने कतई खारिज कर दिया. ख़ास तौर से जयसूर्या ने.
इसकी जगह पहले 15 ओवर्स की फील्डिंग रिस्ट्रिक्शंस का फायदा उठाने की रणनीति बनाई. फील्डर्स के सर के ऊपर से बिंदास शॉट खेलने का नुस्खा खोज निकाला. इस फियरलेस बल्लेबाज़ी को रोकने का कोई तरीका जब तक विपक्षी टीमें खोजती, श्रीलंका वर्ल्ड कप घर ले जा चुका था.सालों तक किसी को पता ही नहीं था जयसूर्या बल्ले के साथ क्या कर सकते हैं
इस बात पर आज यकीन करना मुश्किल है कि अपने करियर के शुरुआती 5-6 सालों तक जयसूर्या को एक बॉलर माना जाता था. ऐसा बॉलर जो थोड़ी बहुत बैटिंग भी कर लेता हो. ये तो बाद में खुला कि वो अद्भुत स्ट्रोक प्लेयर हैं.
वीरेंद्र सहवाग से पहले जिन गिने-चुने खिलाड़ियों का हैंड-आई को-ऑर्डिनेशन देखने लायक होता था, उनमें जयसूर्या टॉप 3 में आएंगे. खड़े-खड़े, बिना किसी फुटवर्क के गेंद को बाउंड्री के पार पहुंचा देने में जो सहजता उन्हें हासिल थी, उसने उनके दुनियाभर में फैन बनाएं.मोस्ट अंडर-रेटेड ऑल-राउंडर खिलाड़ी क्यों कहलाते हैं जयसूर्या?
क्रिकेट की दुनिया में जब महान ऑल-राउंडर खिलाड़ियों का ज़िक्र चलता है, तो अक्सर जैक्स कैलिस, इमरान ख़ान, कपिल देव आदि-आदि नाम सुनाई पड़ते हैं. जयसूर्या का नाम मुश्किल से ही कोई लेता है. जबकि आंकड़े कुछ और ही कहते हैं. उनकी बल्लेबाज़ी से आज की तारीख में सब वाकिफ़ हैं ही. उनके नाम पर लिखे 440 अंतर्राष्ट्रीय विकेट्स बताते हैं कि एक गेंदबाज़ के तौर पर भी वो कितने प्रभावी रहे हैं. स्पिन से ज़्यादा वेरिएशन पर निर्भर रहने वाली उनकी गेंदबाज़ी ने बरसों बल्लेबाज़ों को छकाया.30 जून 1969 को पैदा हुए जयसूर्या के करियर के कुछ हाई पॉइंट्स पर नज़र डाल ली जाए.
डिविलियर्स, अफरीदी, वाटसन सबके रिकॉर्ड पहले जयसूर्या के नाम थे
आज की तारीख में वन डे क्रिकेट में सबसे तेज़ 50, 100, 150 रन बनाने का रिकॉर्ड एबी डिविलियर्स के नाम है. लेकिन एक वक़्त था जब ये सभी जयसूर्या के नाम थे. और वो भी तब क्रिकेट के नियम इतने बैट्समैन-फ्रेंडली नहीं हुआ करते थे.

1996 में जयसूर्या ने 17 गेंदों में 50 रन मारे. पाकिस्तान के खिलाफ़. उस ज़माने के हिसाब से ये करिश्मा था. ये रिकॉर्ड 19 सालों बाद डिविलियर्स ने तोडा. वेस्ट इंडीज के खिलाफ़ 16 गेंदों में उन्होंने अर्धशतक मारा.

उसी टूर्नामेंट में उन्होंने 48 गेंदों में शतक जड़ दिया. ये उस ज़माने में पहली घटना थी, जब किसी बल्लेबाज़ ने 50 से भी कम गेंदों में शतक लगाया हो. ये रिकॉर्ड बाद में शाहिद अफ्रीदी, कोरी एंडरसन से होता हुआ डिविलियर्स के नाम जा के सेट हुआ.

2006 में उन्होंने इंग्लैंड के खिलाफ़ 95 गेंदों में 150 रन मारे. 2011 में इस रिकॉर्ड को शेन वाटसन ने अपने नाम कर लिया. जिसे बाद में डिविलियर्स ने अपने खाते में जमा कर लिया है.

जससूर्या की टॉप 3 पारियां
1) 1996 के वर्ल्ड कप का क्वार्टर-फाइनल मुकाबला था. सामने थी इंग्लैंड की टीम. अपनी नई विस्फोटक रणनीति के चलते जयसूर्या शुरू से ही इंग्लिश गेंदबाजों पर टूट पड़े. इससे पहले कि इंग्लैंड संभल पाता, उनके नाम के आगे 44 गेंदों में 82 रन लग चुके थे. इस तेज़ शुरुआत के बाद 236 रन का टार्गेट हासिल करना कोई कठिन काम नहीं था. श्रीलंका ने वो मैच जीता, अगले दो मैच भी, और कप पर कब्ज़ा कर लिया.
2) शारजाह. टीम इंडिया के लिए वो दिन एक बुरे सपने जैसा है. ये वही मैच था, जहां जयसूर्या ने अपने करियर का सर्वाधिक स्कोर बनाया. 189 रन. श्रीलंका ने जो 299 रन बनाए, उनमें से करीब 64 परसेंट अकेले जयसूर्या ने बनाए. 21 चौके और 6 छक्कों के साथ. ज़ख्मों पर नमक तब मला गया, जब टीम इंडिया 54 रन पर आउट हो गई. यानी टीम इंडिया श्रीलंका से 245 रनों से और जयसूर्या से 135 रनों से हार गई.
3) वर्ल्ड कप जीतने के बाद श्रीलंका सिंगर कप खेलने गई. पाकिस्तान के साथ के मुकाबले में श्रीलंका पहले बल्लेबाजी करने उतरी. पहली गेंद से ही जयसूर्या ने हमला बोल दिया. ये वही मैच है, जिसमें जयसूर्या पहली बार 50 गेंदों के अंदर शतक बनाने वाले बल्लेबाज़ बने थे. अपनी पूरी पारी में उन्होंने 65 गेंदों में 134 रन ठोक डाले. उनकी आक्रामकता का हाल ये था कि आमिर सोहेल के एक ही ओवर से उन्होंने 30 रन बटोर लिए थे.
सनथ जयसूर्या अकेले ऐसे खिलाड़ी हैं इस धरती पर, जिन्होंने वन डे क्रिकेट में 10,000 से ज़्यादा रन बनाए हैं और 300 से ज़्यादा विकेट लिए हैं. एग्जैक्ट बताया जाए तो 13,430 रन और 323 विकेट. जयसूर्या ने क्रिकेट के बाद राजनीति में भी लक आज़माया. श्रीलंकाई संसद में चुने भी गए.
आज भी जयसूर्या की क्रिकेटिंग पारी को लोग ये कह कर याद करते हैं, “वो क्रिकेटर नहीं, तूफ़ान था. आता था, तबाही मचाता था, चला जाता था.”

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