
बालोतरा | गणतंत्र दिवस के पावन अवसर पर हीरा की ढाणी स्कूल में एक ऐसा विवाद सामने आया है, जिसने न केवल स्कूल प्रशासन की नीयत पर सवाल खड़े किए हैं, बल्कि समाज में जातिवाद के जहर को भी उजागर किया है। मामला स्कूल में आयोजित गणतंत्र दिवस के सांस्कृतिक कार्यक्रम का है, जहां छात्राओं द्वारा तेजाजी महाराज के गीत पर नृत्य किया जाना प्रस्तावित था। कार्यक्रम के दौरान, जब छात्राओं ने अपनी प्रस्तुति शुरू की, तो उसी स्कूल की एक शिक्षिका ने बीच में रोकते हुए नृत्य बंद करवा दिया। यह हरकत न केवल छात्राओं की भावनाओं को ठेस पहुंचाने वाली थी, बल्कि समाज के एक बड़े वर्ग के प्रति उनकी नकारात्मक सोच को भी दर्शाती है।
तेजाजी महाराज पर रोक, या जाट समाज पर निशाना? इस घटना को लेकर स्थानीय लोगों में गहरी नाराजगी है। ग्रामीणों और तेजाभक्तों का कहना है कि यह रोक किसी धार्मिक भावनाओं के खिलाफ नहीं थी, बल्कि शिक्षिका की जाट समाज के प्रति जातिवादी मानसिकता का नतीजा थी। तेजाजी महाराज, जो न केवल जाट समाज बल्कि संपूर्ण राजस्थान में पूजनीय हैं, उनके नाम से जुड़ी प्रस्तुति पर इस तरह का हस्तक्षेप निंदनीय है।
राष्ट्रिय पर्व पर ऐसी मानसिकता अनुचित गणतंत्र दिवस जैसे राष्ट्रीय पर्व पर जातिवाद जैसी संकीर्ण सोच का प्रदर्शन सभ्य समाज में किसी भी रूप में स्वीकार्य नहीं हो सकता। यह दिन भारतीय संविधान और समानता के अधिकार का जश्न मनाने का है। ऐसे में एक शिक्षिका द्वारा अपनी जातिवादी सोच को बच्चों के प्रदर्शन पर थोपना, शिक्षा के मंदिर की गरिमा को धूमिल करता है।
स्थानीय समाज में आक्रोश घटना के बाद स्थानीय तेजाभक्त और ग्रामीण समाज ने इस पर कड़ा विरोध दर्ज कराया है। उनका कहना है कि तेजाजी महाराज केवल एक देवता नहीं, बल्कि नारी सम्मान और समाज के आदर्श प्रतीक हैं। ऐसे में उनकी प्रस्तुति को रोकना पूरे समाज का अपमान है।
पुलिस प्रशासन से कार्यवाई की मांग घटना को लेकर जाट समाज और तेजाभक्तों ने पुलिस प्रशासन से इस मामले की जांच कर संबंधित शिक्षिका पर कार्रवाई करने की मांग की है। उनका कहना है कि ऐसी मानसिकता रखने वाले व्यक्तियों का शिक्षा जैसे क्षेत्र में होना बच्चों के भविष्य के लिए खतरा है।
क्या कहते हैं ग्रामीण और तेजाभक्त? ग्रामीणों का कहना है कि तेजाजी महाराज से दिक्कत नहीं है, असल समस्या जाट समाज के प्रति मौजूद पूर्वाग्रह है। उन्होंने चेतावनी दी है कि यदि इस घटना पर उचित कार्रवाई नहीं हुई तो वे बड़े स्तर पर आंदोलन करेंगे।
गणतंत्र दिवस पर घटित यह घटना यह सोचने पर मजबूर करती है कि क्या हम वाकई जातिवाद से ऊपर उठ पाए हैं? शिक्षा के मंदिर को ऐसा स्थान होना चाहिए, जहां हर बच्चे को समान अवसर और सम्मान मिले। लेकिन जब शिक्षकों से ही ऐसी जातिवादी सोच प्रकट होती है, तो यह पूरे समाज के लिए चिंताजनक है। अब देखना यह है कि प्रशासन इस मामले में क्या कदम उठाता है और क्या शिक्षा के इस मंदिर की गरिमा को वापस बहाल किया जा सकेगा?