केंद्र सरकार ने शिक्षा के स्तर को सुधारने के उद्देश्य से ‘नो डिटेंशन पॉलिसी’ को खत्म कर दिया है। अब 5वीं और 8वीं कक्षा के छात्रों को फेल होने पर अगले कक्षा में प्रमोट नहीं किया जाएगा। इस पॉलिसी के तहत पहले छात्रों को बिना फेल किए अगली कक्षा में भेजा जाता था। सरकार के नए फैसले से केंद्रीय विद्यालय, नवोदय विद्यालय और सैनिक स्कूल जैसे 3,000 से ज्यादा स्कूल प्रभावित होंगे। हालांकि, छात्रों को सुधार का मौका देने के लिए विशेष व्यवस्थाएं की जाएंगी।
क्या है नया नियम?
नए नियम के अनुसार, 5वीं और 8वीं कक्षा में फेल होने वाले छात्रों को परिणाम जारी होने के 2 महीने के अंदर दोबारा परीक्षा देने का अवसर मिलेगा। यदि वे दोबारा भी पास नहीं होते हैं, तो उन्हें उसी कक्षा में दोबारा पढ़ाई करनी होगी। हालांकि, स्कूल से उन्हें निकाला नहीं जाएगा।
इस नए प्रावधान के तहत:
री-एग्जाम का प्रावधान:
फेल होने पर छात्र को दो महीने के अंदर पुनः परीक्षा देने का मौका मिलेगा।
कक्षा दोहराने की व्यवस्था:
अगर छात्र दोबारा भी फेल हो जाता है, तो उसे उसी कक्षा में फिर से पढ़ाई करनी होगी।
स्कूल से निष्कासन पर रोक:
छात्रों को स्कूल से बाहर नहीं किया जाएगा। वे अपनी बुनियादी शिक्षा पूरी होने तक उसी स्कूल में पढ़ाई जारी रख सकेंगे।
शिक्षकों की भूमिका:
शिक्षकों को छात्रों की कमजोरियों को पहचानने और उनके सुधार के लिए विशेष प्रयास करने होंगे। इसके लिए अभिभावकों से भी बातचीत की जाएगी।
प्रिंसिपल की जिम्मेदारी:
स्कूल प्रधानाचार्य फेल छात्रों की सूची बनाएंगे और उनकी प्रगति पर नजर रखेंगे।
परीक्षा का स्वरूप:
री-एग्जाम छात्रों की रटने की क्षमता पर आधारित नहीं होगी, बल्कि उनके सीखने और समझने की योग्यता पर फोकस किया जाएगा।
नो डिटेंशन पॉलिसी को क्यों खत्म किया गया?
2009 में लागू की गई ‘नो डिटेंशन पॉलिसी’ का उद्देश्य था कि बच्चों को स्कूल में बनाए रखा जाए और उन्हें फेल होने के डर से बचाया जाए। इस पॉलिसी के तहत 8वीं तक के बच्चों को फेल नहीं किया जाता था। लेकिन इस पॉलिसी ने शिक्षा के स्तर पर नकारात्मक प्रभाव डाला।
प्रमुख कारण: शिक्षा का स्तर गिरा:
2016 की एनुअल एजुकेशन रिपोर्ट के अनुसार, ग्रामीण क्षेत्रों में 8वीं कक्षा के केवल 43.2% छात्र ही सरल विभाजन कर सकते थे।
:- 5वीं कक्षा के केवल 48% छात्र ही 2वीं कक्षा का पाठ्यक्रम समझ पाते थे।
:- 5वीं कक्षा में चार में से केवल एक छात्र अंग्रेजी का साधारण वाक्य पढ़ सकता था।
छात्रों का लापरवाह रवैया:
फेल होने का डर खत्म होने के कारण छात्रों ने पढ़ाई को गंभीरता से लेना बंद कर दिया था।
शिक्षकों की चुनौतियां:
शिक्षकों के पास छात्रों का सही मूल्यांकन करने के लिए पर्याप्त संसाधन और समय नहीं था।
पॉलिसी में शिक्षकों को विद्यार्थियों के प्रदर्शन को सुधारने के लिए कोई विशेष प्रशिक्षण नहीं दिया गया। विशेषज्ञ समितियों की सिफारिश:
TSR सुब्रमण्यम कमेटी और वासुदेव देवनानी कमेटी ने शिक्षा के गिरते स्तर को देखते हुए ‘नो डिटेंशन पॉलिसी’ को खत्म करने की सिफारिश की थी।
2016 में सेंट्रल एडवाइजरी बोर्ड ऑफ एजुकेशन (CABE) ने भी इसे हटाने की सलाह दी थी।
क्या था ‘नो डिटेंशन पॉलिसी’ का उद्देश्य?
यह पॉलिसी 2009 में राइट टू एजुकेशन (RTE) एक्ट के तहत लागू की गई थी। इसका उद्देश्य था:
:- छात्रों को फेल होने के डर से बचाना।
:-उन्हें शिक्षा के लिए सकारात्मक माहौल देना।
:-आत्मसम्मान बनाए रखना और पढ़ाई में रुचि बढ़ाना।
लेकिन धीरे-धीरे इसका असर उल्टा होने लगा। छात्रों का प्रदर्शन कमजोर हुआ और शिक्षक भी उन्हें सुधारने के लिए गंभीर प्रयास नहीं कर सके।
नए नियम का प्रभाव
:-शिक्षा के स्तर में सुधार होगा।
:-छात्रों में जिम्मेदारी का भाव विकसित होगा।
:-शिक्षकों को छात्रों के प्रदर्शन पर अधिक ध्यान देना होगा।
:-अभिभावकों और शिक्षकों के बीच संवाद बेहतर होगा।

केंद्र सरकार का लक्ष्य
सरकार का मानना है कि इस पॉलिसी में बदलाव से छात्रों का शिक्षा स्तर बेहतर होगा। अब बच्चे अगली कक्षा में प्रमोट होने के लिए मेहनत करेंगे और शिक्षा के प्रति गंभीरता से काम करेंगे।
यह कदम भारतीय शिक्षा प्रणाली में सुधार की दिशा में एक बड़ा कदम माना जा रहा है। अब देखना होगा कि यह बदलाव आने वाले समय में कितना सफल होता है।