हर्षा रिछारिया महाकुंभ छोड़ेंगी, छोटे टेंट में हुई कैद: बोलीं- न मैं मॉडल हूं, न संत; बदनाम करने वालों को पाप लगेगा

‘मैं न कोई मॉडल हूं और न ही कोई संत..मैं सिर्फ एक एंकर और एक्ट्रेस थी। संतो ने महिला होने के बावजूद मेरा अपमान किया। आनंद स्वरूप को पाप लगेगा।

यह कहकर हर्षाष रिछारिया रो पड़ती हैं। प्रयागराज के महाकुंभ नगर में पेशवाई के रथ पर बैठने के बाद चर्चा में आईं हर्षा रिछारिया ने खुद को 10 बाई 10 के टेंट में कैद कर लिया है। 24 घंटे से वह इसी टेंट में हैं। हर्षा मध्य प्रदेश के भोपाल की रहने वाली हैं।

बातचीत में हर्षा ने कहा- अब मुझे डर लग रहा है। मेरे ऊपर लग रहे आरोपों से मैं परेशान हूं अब मैें महाकुंभ मेला छोड़कर चली जाऊंगी। में पूरे महाकुंभ में रहने के लिए यहां आई थी। मैं सिर्फ महाराज जी की भक्त हूं। कैलाश आनंद के विचारों से प्रभावित होकर उनके साथ आई थी।

हर्षा ने एक-एक कर हमारे सवालों के जवाब दिए, पढ़िए पूरा इंटरव्यू

प्रश्न: आप मॉडल, संत या सोशल मीडिया इन्फ्लुएंसर हैं? आप खुद को कैसे परिभाषित करती हैं?

जवाब: मैं संत नहीं हूं। संत होना एक बहुत बड़ी और पवित्र पदवी है, और मैं इसे स्वीकार करने योग्य नहीं मानती। मॉडलिंग से भी मेरा कोई संबंध नहीं है, इसलिए यह टैग भी मुझ पर लागू नहीं होता।
मैं सिर्फ एक साधारण शिष्या हूं, जो अपने गुरुदेव के सानिध्य में महाकुंभ को जानने, महसूस करने और समझने के उद्देश्य से तीर्थराज प्रयागराज आई हूं। मेरा उद्देश्य यहां आध्यात्मिक अनुभव और ज्ञान प्राप्त करना है।

बातचीत के दौरान हर्षा रिछारिया फूट-फूटकर रोने लगीं और शॉल से अपने आंसू पोछे।

प्रश्न: आप महामंडलेश्वर के रथ में सवार हुईं, संतों ने इसका विरोध किया। इस पर आपका क्या कहना है?

जवाब: मुझे व्यक्तिगत रूप से ऐसा लगता है कि अगर कोई भी व्यक्ति वेस्टर्न कल्चर को छोड़कर सनातन धर्म की संस्कृति से जुड़ना, उसे समझना और उसमें रमना चाहता है, तो हमें उसे खुशी-खुशी अपने परिवार और धर्म में शामिल करना चाहिए। यह हमारा धर्म और कर्तव्य है, क्योंकि हम हिंदू हैं और हमारी परंपरा सबको अपनाने की है।
उसे एक बच्चे की तरह मार्गदर्शन और स्नेह देना चाहिए, न कि विरोध करना। ऐसा करना न केवल गलत है, बल्कि हमारे धर्म की व्यापकता और सहिष्णुता के विपरीत भी है।

प्रश्न: कैलाशानंद गिरी महाराज के संपर्क में कैसे आईं और आपने धर्म-अध्यात्म को कैसे समझा?

जवाब: परम पूज्य गुरुदेव कैलाशानंद गिरी महाराज की बात करें, तो मैंने उनसे कुछ समय पहले ही शिक्षा और दीक्षा ली है। मैंने उनसे मंत्र दीक्षा भी प्राप्त की है। उनके लाखों शिष्य और अनुयायी हैं, और मैं भी उन शिष्यों में से एक बेटी और शिष्या हूं।
मैं खुद को बहुत सौभाग्यशाली मानती हूं कि मुझे उनके सानिध्य का अवसर मिला। वह एक सिद्ध पुरुष हैं, जिनकी ख्याति पूरी दुनिया में है। देश-विदेश के लोग उनसे जुड़ने और उनका आशीर्वाद प्राप्त करने के लिए उत्सुक रहते हैं। उनके सानिध्य में रहकर मैंने धर्म और अध्यात्म को गहराई से समझा है।

आचार्य महामंडलेश्वर स्वामी कैलाशानंद गिरि महाराज की शिष्या हैं हर्षा रिछारिया।

प्रश्न: आपके संगम में शाही स्नान को लेकर विवाद हुआ। इस पर आपका क्या कहना है?

जवाब: संगम या अमृत स्नान के लिए हर व्यक्ति लालायित रहता है। हर कोई चाहता है कि साधु-संतों के सानिध्य में, उनकी छत्र-छाया में यह अमृत स्नान करने का सौभाग्य प्राप्त हो।
जहां तक मेरी शाही सवारी में बैठने को लेकर विवाद की बात है, तो मैं स्पष्ट करना चाहूंगी कि यह कोई विवाद का विषय नहीं था। उसमें सिर्फ मैं ही नहीं थी, और सिर्फ मैंने ही भगवा शॉल नहीं ओढ़ा था।
सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि अगर हिंदू और सनातनी होने के नाते मैंने भगवा शॉल ओढ़ा, तो इसे गर्व की बात समझा जाना चाहिए था। यह पूरे सनातन धर्म के लिए एक गौरव का क्षण होना चाहिए।
मैं निरंतर प्रयासरत हूं कि युवाओं को सनातन धर्म के प्रति प्रेरित कर सकूं। लेकिन अगर मैं खुद इसका उदाहरण नहीं बनूंगी, तो दूसरों को जागरूक कैसे कर पाऊंगी? इस संदर्भ में विवाद खड़ा करना धर्म की भावना को समझने में कमी दर्शाता है।

प्रयागराज में 4 जनवरी को पेशवाई के समय हर्षा गले में रुद्राक्ष की माला और माथे पर तिलक लगाए दिखीं।

प्रश्न: आपकी शाही सवारी को लेकर विवाद हुआ और मीडिया ने इसे काफी हाईलाइट किया। इस पर आपका क्या कहना है?

जवाब: शाही सवारी के दौरान सिर्फ मैं ही नहीं थी, बल्कि मेरे अलावा कई गृहस्थ लोग भी बैठे हुए थे, जिनका अपना परिवार, बच्चे और माता-पिता हैं। यह सिर्फ हमारे निरंजनी अखाड़े तक सीमित नहीं था; अलग-अलग अखाड़ों की शाही सवारी में भी गृहस्थ लोग शामिल थे। मुझे लगता है कि मीडिया ने मुझे टारगेट किया हुआ था और इसे विवाद का मुद्दा बना दिया।

अगर किसी बच्चे से कोई गलती होती है, तो उसे प्यार और समझ से समझाया जाना चाहिए। लेकिन उसे विवादों में घेरना या उसका नाम खराब करना बिल्कुल गलत है। पहले मुझे साध्वी का टाइटल देना, फिर मॉडल का टाइटल दे देना—ये सब अनुचित है।

यह कोई विवाद का विषय नहीं था। मैं मानती हूं कि अगर किसी ने सनातन धर्म की ओर कदम बढ़ाया है, तो उसे प्रोत्साहित करना चाहिए, न कि विवाद खड़ा करना। हमारा धर्म सिखाता है कि गलतियों को सुधारें, न कि उन्हें बड़ा मुद्दा बनाएं।

प्रश्न: अब कैसा महसूस कर रही हैं? क्या विचार हैं?

जवाब: मुझे अब बहुत कष्ट हो रहा है। मैंने सोचा था कि 144 साल बाद यह पूर्ण महाकुंभ आया है। मैं बड़ी उम्मीदों के साथ आई थी कि शायद यह मेरे जीवन का पहला और आखिरी पूर्ण महाकुंभ होगा। मैंने चाहा था कि पूज्य गुरुदेव के सानिध्य में धर्म, संस्कृति और कुंभ के बारे में जानने और समझने का मौका मिलेगा।

एक युवा के रूप में मैंने सोचा था कि उन संतों से मिलूंगी, जो आम जीवन से बहुत दूर हैं और जिनसे बहुत कुछ सीखने को मिलेगा। लेकिन आज जो कुछ हो रहा है, उससे दुख होता है। हमारे देश में विदेशी आते हैं, हम उनकी वाहवाही करते हैं। लेकिन एक भारतीय बेटी के लिए तरह-तरह की बातें हो रही हैं, विवादों में घेरा जा रहा है। ऐसे में कष्ट तो होगा ही।

प्रश्न: आपकी पुरानी तस्वीरें वायरल हो रही हैं और आप ट्रोल हो रही हैं। इस पर आपका क्या कहना है?

जवाब: मेरी पुरानी तस्वीरों में कुछ भी गलत नहीं है। मैंने कभी कुछ छिपाया नहीं। मैंने खुद सबको बताया कि मैं एक एक्ट्रेस थी, एंकर थी। अब उस जीवन से बाहर निकलकर धर्म से जुड़ गई हूं। मैंने पहले ही सब स्पष्ट कर दिया था।

मेरा खुद का कंटेंट वायरल करना गलत है। जिस प्रोफेशन में मैं थी, वहां छोटे कपड़े पहनना या जींस-टॉप पहनना आम बात है। आज भी भारत के बड़े शहरों में लड़कियां हर तरह के कपड़े पहनती हैं। इसमें कुछ भी अनुचित नहीं है। मेरे कपड़ों को लेकर विवाद करना या ट्रोल करना, किसी की सोच की कमी को दर्शाता है।

हर्षा रिछारिया ने 2 साल पहले हरिद्वार में गुरु दीक्षा ली थी

प्रश्न: आनंद स्वरूप महाराज ने आपको लेकर एक बयान दिया है। इस पर आपका क्या कहना है?

जवाब: मुझे आनंद स्वरूप महाराज के बयान पर गुस्सा भी आ रहा है और हंसी भी। क्योंकि किसी पर उंगली उठाने का हक तब होता है, जब हम खुद पूरी तरह सही हों। मैंने उनके बारे में जानकारी ली, तो पता चला कि वो खुद को संत और तपस्वी बताते हैं, लेकिन उनकी खुद की फैमिली है—बीवी और बच्चे हैं। इसके बावजूद वो अपने परिवार के बारे में किसी को नहीं बताते।

आनंद स्वरूप महाराज का काम यही है कि खाली बैठे दूसरों पर टिप्पणी करें और जो लोग आगे बढ़ रहे हैं, उन्हें पीछे खींचने की कोशिश करें। जब उन्होंने देखा कि मेरे परम पूज्य गुरुदेव का नाम हो रहा है, लोग मांस-मदिरा छोड़कर उनके सानिध्य में धर्म की ओर बढ़ रहे हैं, तो जलन की भावना में उन्होंने ऐसा किया।

पहले उन्होंने किन्नर अखाड़े और जूना अखाड़े को लेकर कई बातें कही थीं, लेकिन वहां उनकी दाल नहीं गली। अब वो मेरे कंधों पर बंदूक रखकर अपनी भड़ास निकाल रहे हैं। मुझे लगता है कि उनकी ये हरकतें जलन और नकारात्मकता का नतीजा हैं।

प्रश्न: क्या अब आप कुंभ में रहेंगी या यहां से जाने का फैसला कर चुकी हैं?

जवाब: मैंने सोचा था कि पूरे कुंभ मेले में रहूंगी। इसी उद्देश्य से यहां आई थी, लेकिन अब ऐसा लग रहा है जैसे मैं कैद होकर रह गई हूं। जिस उद्देश्य से यहां आई थी—धर्म, संस्कृति और आध्यात्म को समझने के लिए—वह पूरा नहीं हो पा रहा है। मुझे लोगों के सवालों और विवादों से बचना पड़ रहा है।

अब मुझे ऐसा महसूस हो रहा है कि शायद मुझसे कोई बहुत बड़ा गुनाह हो गया है। मुझे जानबूझकर टारगेट किया जा रहा है। ऐसे माहौल में मैं यहां और नहीं रह पाऊंगी, क्योंकि खुलकर सांस भी नहीं ले पा रही हूं। इसलिए मैंने कुंभ छोड़कर जाने का फैसला कर लिया है।

मुझे सबसे ज्यादा दुख इस बात का है कि जो खुद को बड़े साधु-संत कहते हैं, वही अभद्र टिप्पणियां कर रहे हैं। जो बेटी समान है, उस पर ऐसे कमेंट करना शर्मनाक है। उनकी ऐसी बातें एक बेटी को महाकुंभ छोड़ने पर मजबूर कर रही हैं। यह वही महाकुंभ है, जो जीवन में शायद एक ही बार आता है।

आनंद स्वरूप जैसे लोगों को सोचना चाहिए कि उनका यह आचरण धर्म और संस्कृति का उपहास है। ऐसा व्यवहार पुण्य नहीं, पाप की श्रेणी में आता है। मैं यहां से जाते हुए बस इतना ही कहना चाहूंगी।

Leave a Reply