वीरता, आस्था और मातृशक्ति की अनूठी कथा
राजस्थान के बाड़मेर जिले में स्थित नागाणा धाम, जहां अखिल भारतीय राठौड़ वंश की कुलदेवी मां नागणेच्चिया का भव्य मंदिर स्थित है, केवल एक आस्था का केंद्र नहीं, बल्कि वीरता और धर्म रक्षा की प्रेरणादायक गाथा भी है। यह मंदिर न केवल राठौड़ वंश की कुलदेवी के रूप में प्रसिद्ध है, बल्कि पूरे देश से श्रद्धालुओं को अपनी ओर आकर्षित करता है।
वीर योद्धा राव धूहड़जी और माता नागणेच्चिया की स्थापना
यह कथा 13वीं शताब्दी की है, जब राव धूहड़जी, जो राव सिहा के वंशज थे, माता नागणेच्चिया की पालकी लेकर खेड़ की ओर प्रस्थान कर रहे थे। रास्ते में जब वे नागाणा गांव पहुंचे, तो उन्होंने देखा कि कुछ लुटेरे निर्दोष गायों को हांक कर ले जा रहे थे। राव धूहड़जी एक धर्मपरायण और साहसी योद्धा थे। वे इसे सहन नहीं कर सके और अपनी माता की पालकी को वहीं पहाड़ी पर रखकर लुटेरों से युद्ध करने के लिए आगे बढ़े।
युद्ध अत्यंत भयंकर था। राव धूहड़जी ने अद्भुत पराक्रम का प्रदर्शन किया, परंतु गौ रक्षा करते हुए उन्होंने वीरगति प्राप्त की। यह बलिदान व्यर्थ नहीं गया—गौ माता की रक्षा हुई, लुटेरे पराजित हुए, और उसी क्षण से उस पहाड़ी को देवी का पवित्र स्थान मानकर वहां मां नागणेच्चिया की स्थापना कर दी गई।
मंदिर की आध्यात्मिकता और परंपराएं
मां नागणेच्चिया का यह धाम तब से लेकर आज तक श्रद्धालुओं के लिए दिव्य आस्था का केंद्र बना हुआ है। मंदिर में शारदीय और चैत्र नवरात्रों के दौरान नौ दिनों तक अखंड ज्योत प्रज्वलित रहती है। इन पावन दिनों में हजारों की संख्या में श्रद्धालु यहां माता के दर्शन और पूजन के लिए आते हैं।
राठौड़ वंश की कुलदेवी होने के कारण विशेष रूप से इस वंश के लोग शुक्ल पक्ष में माता के दर्शन के लिए आते हैं। नागाणा धाम में माता के भक्तों के लिए विशाल धर्मशाला, दर्शन व्यवस्था, पार्किंग, जल सुविधा और सुरक्षा के विशेष प्रबंध किए गए हैं।
मंदिर निर्माण और विकास कार्य
इस पवित्र धाम को और भव्य बनाने के लिए पूर्व महाराजा गजसिंह के नेतृत्व में वर्ष 2007 में मंदिर ट्रस्ट का गठन किया गया। 13 सितंबर 2009 को मंदिर के जीर्णोद्धार हेतु भूमि पूजन किया गया और लगभग 50 करोड़ रुपये की लागत से मंदिर का निर्माण कार्य प्रारंभ हुआ। मंदिर के वास्तुशिल्प को द्रविड़ और नागर शैली में तैयार किया जा रहा है, जिससे यह दूर से ही भव्य और आकर्षक दिखाई देता है।
मंदिर परिसर में प्रसिद्ध गोरक्षक पाबूजी राठौड़ का मंदिर भी स्थित है, जो गौ-रक्षा और शौर्य का प्रतीक है। इसके अतिरिक्त, राव धूहड़जी और पीथड़जी के भव्य द्वार भी मंदिर की शोभा बढ़ाते हैं।
ओरण भूमि: प्रकृति और परंपरा का संगम
नागाणा धाम के पास स्थित 2000 बीघा भूमि को राठौड़ वंश के पूर्वजों ने ओरण (वनक्षेत्र) के रूप में संरक्षित किया था। ओरण की यह परंपरा राजस्थान के मरुक्षेत्र में प्राचीन काल से चली आ रही है, जिसमें गांव के एक भूखंड को देवी-देवताओं या पितरों के नाम समर्पित कर उसे प्राकृतिक वन के रूप में छोड़ दिया जाता है।
इस ओरण भूमि में कैर, कुम्मट, खेजड़ी, जाल, बैर, खींप, अरणा और बबूल जैसे वृक्षों की भरपूर संपदा मौजूद है। हाल ही में मारवाड़ राजपूत सभा द्वारा कल्याणपुर से नागाणा धाम तक “एक पेड़ मां के नाम“ अभियान के तहत 5000 पौधे लगाए गए, जिससे इस पवित्र स्थल की हरियाली और बढ़ गई है।
नवरात्रि महोत्सव और धार्मिक आयोजन
मां नागणेच्चिया के धाम में होली के बाद शुरू होने वाले चैत्र नवरात्रि में विशेष पूजा-अर्चना और भव्य मेला आयोजित किया जाता है। हजारों श्रद्धालु माता के दरबार में हाजिरी लगाकर उनका आशीर्वाद प्राप्त करते हैं।
मंदिर में शारदीय और चैत्र नवरात्रि के दौरान अखंड ज्योत जलाने की परंपरा है। इन दिनों में यहां भजन-कीर्तन, हवन-यज्ञ और अन्य धार्मिक आयोजन होते हैं, जिनमें श्रद्धालु पूरे भक्तिभाव से शामिल होते हैं।