
तीन पीढ़ियों की एक साथ प्रस्तुति, गैर नृत्य की गूंज एशियाड तक
राजस्थान की लोकसंस्कृति और परंपराओं में अनेक रंग समाए हैं। इन्हीं में से एक है सनावड़ा का विश्व प्रसिद्ध गैर नृत्य, जिसकी धमक पिछले 184 वर्षों से अनवरत जारी है। यह नृत्य होली के दूसरे दिन धुलंडी पर खेला जाता है, जिसमें सैकड़ों गैरिए (नृत्य कलाकार) विशेष वेशभूषा “आंगी” पहनकर ढोल और थाली की थाप पर नृत्य करते हैं।
इस वर्ष भी यह भव्य आयोजन हुआ, जिसमें बाड़मेर सहित आसपास के जिलों से हजारों लोगों ने शिरकत की। इस मौके पर बाड़मेर सांसद उम्मेदाराम बेनीवाल, पूर्व केंद्रीय मंत्री कैलाश चौधरी और अन्य स्थानीय जनप्रतिनिधि भी शामिल हुए। खास बात यह रही कि इस बार गैर नृत्य में तीन पीढ़ियां एक साथ नृत्य करती नजर आईं, जो इस परंपरा की जीवंतता को दर्शाती है।

गांव से लेकर एशियाड तक गूंजा गैर नृत्य
बाड़मेर जिला मुख्यालय से 33 किलोमीटर दूर स्थित सनावड़ा गांव हर साल इस भव्य गैर नृत्य आयोजन का गवाह बनता है। इस नृत्य की खास बात यह है कि यह केवल बाड़मेर या राजस्थान तक सीमित नहीं है, बल्कि 1982 में दिल्ली में आयोजित एशियाड खेलों तक इसकी गूंज सुनाई दी थी। उस समय जिले से सैकड़ों गैर कलाकारों ने इस नृत्य को अंतरराष्ट्रीय मंच तक पहुंचाया था।
गैर नृत्य की खासियत इसकी लयबद्ध प्रस्तुति और अनोखी वेशभूषा है। कलाकार लाल और सफेद रंग की आंगी पहनते हैं, जो इस नृत्य की पहचान है। भारी-भरकम आंगी पहनकर जब गैरिए तालबद्ध तरीके से थाली और ढोल की ध्वनि पर नृत्य करते हैं, तो नजारा देखने लायक होता है।
महिलाओं की रक्षा से शुरू हुई गैर नृत्य की परंपरा
गैर नृत्य की शुरुआत का इतिहास भी बेहद रोचक है। स्थानीय बुजुर्ग खींयाराम बताते हैं कि करीब 200 वर्ष पहले जब किसान खेती से खाली होते थे, तब महिलाएं लूर नृत्य करती थीं। उस समय महिलाओं की सुरक्षा के लिए पुरुष हाथों में डंडा लेकर पहरा देते थे। धीरे-धीरे पुरुषों ने भी डंडे के साथ नृत्य करना शुरू किया, और यह परंपरा बन गई। समय के साथ यह नृत्य केवल सुरक्षा का प्रतीक नहीं रहा, बल्कि लोककला और संस्कृति का अभिन्न अंग बन गया।
आज यह नृत्य न केवल होली जैसे त्योहारों में किया जाता है, बल्कि सरकारी आयोजनों और सांस्कृतिक कार्यक्रमों में भी इसकी खास जगह है।
गैर नृत्य के लिए स्टेडियम बनाने की घोषणा
इस ऐतिहासिक आयोजन के दौरान सांसद उम्मेदाराम बेनीवाल ने इस कला को संरक्षित करने के लिए एक बड़ी घोषणा की। उन्होंने कहा कि सनावड़ा में एक गैर नृत्य स्टेडियम बनाया जाएगा, जहां इस नृत्य का भव्य आयोजन हो सके। उन्होंने स्थानीय सरपंच को जमीन चिन्हित करने के लिए कहा और यह आश्वासन दिया कि वह भारत सरकार के पर्यटन और संस्कृति मंत्रालय से विशेष बजट स्वीकृत कराएंगे।

सांसद बेनीवाल ने गैर नृत्य को विश्व स्तर पर पहचान दिलाने के लिए स्थानीय लोगों से सहयोग की अपील भी की।
सनावड़ा गैर नृत्य: परंपरा, संस्कृति और कला का संगम
सनावड़ा का गैर नृत्य केवल एक परंपरा नहीं, बल्कि राजस्थान की अनमोल धरोहर है। सदियों से चली आ रही यह परंपरा आज भी उतनी ही जोश और उत्साह के साथ जीवंत है। यह नृत्य न केवल सामूहिकता, भाईचारे और सांस्कृतिक समृद्धि का प्रतीक है, बल्कि यह राजस्थान की पहचान भी बन चुका है।
हर साल इस नृत्य को देखने और इसमें भाग लेने के लिए बड़ी संख्या में लोग पहुंचते हैं। इस बार जब तीन पीढ़ियों ने एक साथ नृत्य किया, तो यह स्पष्ट हो गया कि यह परंपरा भविष्य में भी इसी जोश और गर्व के साथ जारी रहेगी।
इस प्रकार सनावड़ा गैर नृत्य सिर्फ एक नृत्य नहीं, बल्कि राजस्थान की सांस्कृतिक धड़कन है, जो सदियों से धुलंडी पर गूंज रही है और आगे भी गूंजती रहेगी।