
बाड़मेर: सेड़वा क्षेत्र में सामाजिक कुरीतियों को तोड़ते हुए और समाज को नई दिशा दिखाते हुए, बाड़मेर जिले के हुसैन का तला गांव में एक ऐतिहासिक और प्रेरणादायक कदम उठाया गया है। पूर्व सरपंच स्वर्गीय रूपाराम जी गोदारा के निधन के पश्चात उनके परिवार ने एक महत्वपूर्ण निर्णय लिया, जो पूरे समाज के लिए एक उदाहरण बन गया।

मृत्यु भोज परंपरा को त्यागकर किया सामाजिक सुधार का संकल्प
अक्सर देखा जाता है कि किसी व्यक्ति के निधन के बाद शोक संतप्त परिवार मृत्यु भोज जैसी परंपराओं में उलझ जाता है, जिससे आर्थिक और सामाजिक दबाव बढ़ता है। लेकिन गोदारा परिवार ने रूढ़ियों से ऊपर उठकर यह निर्णय लिया कि बारह दिनों तक कोई भी व्यक्ति नशे का सेवन नहीं करेगा, और बाहरवें दिन केवल सादा भोजन परोसा जाएगा। इस आयोजन में सिर्फ शुद्ध देसी घी, दाल और रोटी का भोजन रहेगा, ताकि अनावश्यक दिखावे और फिजूलखर्ची से बचा जा सके।
समाज के लिए प्रेरणादायक संदेश
यह पहल सिर्फ गोदारा परिवार तक सीमित नहीं है, बल्कि पूरे क्षेत्र के लिए एक प्रेरणास्त्रोत बन चुकी है। इस निर्णय से समाज में यह संदेश गया कि अनावश्यक परंपराओं से हटकर, जरूरतमंदों की सहायता और समाज सुधार की दिशा में कार्य करना अधिक महत्वपूर्ण है। मृत्यु भोज जैसी कुरीतियों को छोड़ने का साहसिक निर्णय समाज में एक नई सोच को जन्म दे रहा है।

नशा मुक्ति की दिशा में क्रांतिकारी कदम
बॉर्डर क्षेत्र में नशे की समस्या एक गंभीर चुनौती रही है, लेकिन गोदारा परिवार के इस फैसले ने नशा मुक्ति को लेकर जागरूकता की एक नई लहर चला दी है। जब एक सम्मानित परिवार इस तरह का निर्णय लेता है, तो समाज भी उससे प्रेरित होकर सकारात्मक बदलाव की ओर अग्रसर होता है।
आने वाली पीढ़ियों के लिए नई सीख
इस पहल से यह स्पष्ट होता है कि अब लोग दिखावे से ऊपर उठकर सादगी, नैतिक मूल्यों और समाज सेवा को प्राथमिकता दे रहे हैं। यह निर्णय न केवल एक नई परंपरा की शुरुआत है, बल्कि आने वाली पीढ़ियों को यह सिखाता है कि जीवन में असली श्रद्धांजलि फिजूलखर्ची में नहीं, बल्कि समाज के कल्याण में निहित है।
समाज को जागरूक करने की जरूरत
अब समय आ गया है कि हम भी इस परिवर्तनशील सोच को अपनाएं और अनावश्यक परंपराओं से बाहर निकलकर समाज में सकारात्मक बदलाव लाने की दिशा में कदम बढ़ाएं। यह पहल नशा मुक्ति, सादगी और समाज सेवा के लिए एक नई रोशनी की तरह है, जिससे प्रेरणा लेकर कई और परिवार भी इस दिशा में आगे बढ़ सकते हैं।

सच्ची श्रद्धांजलि वही होती है, जो समाज के उत्थान में योगदान दे सके।”
धन्यवाद।